शीत युद्धोत्तर दौर (The post Cold War Era) एवं यूएसए का वर्चस्व (USA’s Hegemony)

शीत युद्धोत्तर दौर (The post Cold War Era) एवं यूएसए का वर्चस्व (USA’s Hegemony): श्री आरपी पूनिया (बाड़मेर) का आर्टिकल जो आरएएस (RAS), सिविल सेवा तथा राजस्थान एवं भारत की विभिन्न परीक्षाओं के लिए अत्यंत उपयोगी है।

शीत युद्ध से तात्पर्य :-  द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति से 1991 तक सोवियत संघ vs अमेरिका व उसके साथी देशों के बीच चली सैन्य शक्ति बढ़ाने की प्रतिद्वंदिता, तनाव एवं वैचारिक संघर्ष की एक श्रंखला जिसे शीत युद्ध कहा गया। युद्ध को “ठंडा” माना गया क्योंकि आक्रमण प्रत्यक्ष सैन्य संघर्ष के बजाय वैचारिक, आर्थिक और कूटनीतिक था। यह विचारधारा की लड़ाई इस बात को लेकर थी कि संपूर्ण विश्व के राजनैतिक, आर्थिक व सामाजिक जीवन को सूत्रबद्ध करने का उदार लोकतंत्र युक्त पूंजीवादी  विचारधारा एवं समाजवादी वर्चस्व में साम्यवादी विचारधारा में से बेहतर सिद्धांत कौन सा है।
वर्चस्व से अभिप्राय :-  वर्चस्व (Hegemony) , नायकत्व या आधिपत्य का अर्थ किसी एक देश की अगुवाई या प्राबल्य है। वर्चस्वशाली देश की सैन्य शक्ति अजेय होती है । इस शब्द का प्रयोग प्राचीन यूनान में एथेंस की प्रधानता को चिन्हित करने के लिए किया जाता था, अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में यदि ताकत का एकमात्र ही केंद्र हो तो उसे वर्चस्व कहते हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए यह शब्द सैन्य प्राबल्य के लिए कहा जाता है।

  1. अमेरिकी वर्चस्व :- अमेरिकी वर्चस्व का युग 1991 में सोवियत संघ के विघटन से शुरू होता है,  तब  विश्व व्यवस्था द्विध्रुवीयता से  एक  ध्रुवीयता की तरफ अग्रसर हो गयी, इस समय अमेरिका  ही सबसे बड़ी सैनिक व आर्थिक ताकत थी, इसे ही अमेरिकी वर्चस्व कहा गया।
    अमेरिकी वर्चस्व को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है
     (i)  सैन्य वर्चस्व   (ii) ढांचागत ताकत के रूप में वर्चस्व (iii) सांस्कृतिक वर्चस्व


(i)  सैनिक वर्चस्व (USA + NATO) :- अमेरिका की मौजूदा ताकत की रीढ़ उसकी अपूर्व बड़ी चढ़ी सैन्य ताकत है जिसके दम पर वह किसी भी देश को निशाना बना सकता है एवं अपने निहित हितों की पूर्ति सुनिश्चित करता है , जैसे इराक पर हमला , तालिबान के आतंकी ठिकानों के खात्मे हेतु अफगानिस्तान में हमले से पहले संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति भी नहीं लेना आदि ।
(ii) ढांचागत ताकत के रूप में वर्चस्व :- अमेरिका की जीडीपी विश्व में सबसे बड़ी है , इंटरनेट नेटवर्क पर अमेरिका का एकाधिकार है, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS), वैश्विक नौवहन प्रणाली पर अमेरिकी आधिपत्य, अधिकतम बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मुख्यालय अमेरिका में होना आदि इसके प्रमाण हैं। संस्थागत वर्चस्व से अभिप्राय वैश्विक अर्थव्यवस्था की दशा दिशा निर्धारित करने वाली संस्थाओं में अपनी मनमर्जी चलाना, हस्तक्षेप करना एवं निर्णय को प्रभावित करने की क्षमता, अमेरिकी हितों के प्रतिकूल स्थिति में विभिन्न देशों पर आर्थिक प्रतिबंध , छोटे देशों को ॠणों में रियायत देकर अपनी बात मनवाने हेतु दबाव डालना; उदाहरण स्वरुप विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन (WTO) एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) आदि से 1991 में भारत को वित्तीय संकट से उबारने के एवज में उदारीकरण निजीकरण एवं वैश्वीकरण की नीति लागू करने हेतु भारत को मजबूर  करना ।
(iii) सांस्कृतिक वर्चस्व :- मानसिक रूप से पूरी दुनिया अमेरिकी खान-पान रहन-सहन व जीवन यापन के तौर-तरीकों को आदर्श मानकर उनका अनुसरण करती है, जैसे जींस पहनना, अंग्रेजी बोलने को स्टेटस सिंबल के तौर पर समझा जाना, मैकडॉनल्ड वाली पिज़्ज़ा बर्गर आदतो को खानपान मे अपनाना , अमेरिकी फिल्मो(Hollywood) द्वारा पश्चिमी संस्कृति की छाप संपूर्ण विश्व पर पङना आदि अमेरिका के सांस्कृतिक वर्चस्व कायम होने के ही सबूत है।


2. अमेरिकी शक्ति (वर्चस्व) के रास्ते में अवरोध:-

(i) अमेरिका की संस्थागत बनावट :-  अमेरिका में शक्तियों का विभाजन शासन के तीन अंगों में स्पष्टतः किया हुआ है, इन तीनों अंगों का तत्समय में सक्षम होना तथा एक दूसरे की स्वेच्छाचारिता पर नियंत्रण लगाने की व्यवस्था,  कार्यपालिका द्वारा सैन्य शक्ति के बे-लगाम इस्तेमाल रोकने हेतु यही त्रिस्तरीय शक्ति संतुलन प्रणाली अंकुश लगाती है।

(ii) अमेरिका का उन्मुक्त समाज तथा जनसंचार के साधन :- अमेरिकी समाज अपनी प्रकृति से उन्मुक्त है जिनसे राजनीतिक नेतृत्व द्वारा  किसी अन्य देश पर कठोर कार्यवाही के लिए अमेरिका के नागरिकों को एक मत करना / जनस्वीकृति लेना दुष्कर कार्य है,  जन संचार के साधनों पर निजी स्वामित्व होने से जागरूकता के प्रसार, शिक्षा का उच्चतम स्तर आदि के कारण राजनीतिक उद्देश्यों की एकपक्षीय पूर्ति सरकार के लिए संभव नहीं है। वियतनाम युद्ध का अमेरिकी नागरिकों का  व्यापक विरोध प्रदर्शन इस बात का परिचायक है कि अमेरिका की जनता  USA के निरंकुश विदेशी सैन्य अभियानों मे अवरोध का काम करती है।

(iii) NATO सैनिक संगठन :-NATO (North Atlantic Treaty Organisation) में शामिल लोकतांत्रिक देश अमेरिका की शक्ति संयमित रखने के लिए नैतिक दबाव डालते रहते हैं, इन देशों में बाजारमूलक अर्थव्यवस्था प्रचलित है अतः NATO की सामूहिक सुरक्षा संधि के कारण सदस्य देश किसी भी सैन्य अभियान के कारण होने वाले आर्थिक प्रभाव को मद्देनजर रखते हुए अमेरिका के वर्चस्वशाली व्यवहार को संयमित करते है एवं अंकुश लगा सकते हैं ।इसके अतिरिक्त सत्ता के वैकल्पिक केंद्र भी अमेरिकी वर्चस्व पर अंकुश लगाते हैं जैसे  विभिन्न अंतराष्ट्रीय संगठन, यूरोपीयन यूनियन, चीन का तीव्र उभार,  BRICS,ASEAN,  दक्षिण अफ्रीकी संगठन, CELAC (Community of Latin American and Caribbean states) जिसमें 33 सदस्य देश है यह संगठन भी अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दे रहा है।

(iv) आतंकवाद :- अमेरिका के वर्चस्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती आतंकवाद भी है क्योंकि वर्तमान समय में इतने सारे युद्ध करने के बाद भी आतंकवाद खत्म नहीं हुआ है और जब तक आंतकवाद को खत्म नहीं किया जाता तब तक अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती मिलती रहेगी वर्तमान में अमेरिका के वर्चस्व का सामना कोई भी नहीं कर सकता रूस चीन यूरोपीय संघ में अमेरिका को टक्कर देने की क्षमता है लेकिन इन देशों में आपस में विवाद है।


3. वर्चस्व से बचने के उपाय :- अन्य देशो के पास अमेरिकी वर्चस्व के प्रतिरोध हेतु उपलब्ध विकल्प
(i) बैंडवैगन की नीति :-  इसका अर्थ है कि वर्चस्व जनित अवसरों का लाभ उठाते हुए विकास करना  (ii) अपने को छुपा लेने की नीति ताकि वर्चस्व वाले देशों की नजर में ही न पड़े  (iii) राज्यैत्तर संस्थाएं जैसे स्वयंसेवी संगठन कलाकार बुद्धिजीवी एवं दबाव समूह मिलकर अमेरिकी वर्चस्व का प्रतिकार करें।


वैश्विक राजनीतिक परिद्रश्य में अमेरिकी वर्चस्व की अभिव्यक्ति निम्नलिखित घटनाओं एवं प्रवृत्तियों से होती है


(a) खाड़ी युद्ध :- 2 अगस्त 1990 को कुवैत के तेल इंधन भंडारों पर कब्जे के उद्देश्य से इराक नहीं कुवैत पर हमला कर दिया तमाम राजनयिक कोशिशों के नाकाम होने पर  संयुक्त राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ ने  कुवैत को मुक्त कराने के लिए बल प्रयोग की अनुमति दे दी ।अमेरिकी जनरल नॉर्मन शवार्जकाॅव के नेतृत्व में 34 देशों की 660000 सैनिकों ने इराक के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस प्रथम खाड़ी युद्ध को ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म नाम दिया लेकिन इस युद्ध में 34 देशों में से 75% सैनिक केवल अमेरिका के थे। बड़े ही विज्ञापन जैसे अंदाज में अमेरिका ने स्मार्ट बमों का प्रयोग किया एवं उनका लाइव प्रसारण किया जिससे कुछ पर्यवेक्षकों ने इसे कंप्यूटर युद्ध की संज्ञा दी। इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने इसे सौ जंगो की एक जंग कहा था । प्रथम खाड़ी युद्ध से यह बात जगजाहिर हो गई की सैन्य शक्ति के मामले में अन्य देशों से अमेरिका बहुत आगे हैं, खाड़ी युद्ध के बाद बदली परिस्थितियों व अमेरिकी वर्चस्व को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने नई विश्व व्यवस्था की संज्ञा दी।
(b) क्लिंटन का दौर:-  यद्यपि अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन घरेलू मामलों एवं गैर सैन्य कार्यों जैसे जलवायु परिवर्तन, लोकतंत्र के सुदृढ़ीकरण एवं विश्व व्यापार जैसे नरम मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते थे , लेकिन 1999 में युगोस्लोविया ने अपने प्रांत कोसोवो में अल्बानीयाई आंदोलन को कुचलने हेतु सैन्य कार्रवाई की, इसके जवाब में अमेरिका व NATO देशों ने युगोस्लाविया पर 2 महीने बमबारी करके उसे कई देशों में तोड़ दिया जैसे स्लोवेनिया, Bosnia-Herzegovina, क्रोएशिया, सरबिया, कोसोवो एवं मोंटेनीग्रो।
(c) केन्या घटना (ऑपरेशन इंफिनाइट रीच Operation Infinite Reach)  :- 1998 में जब केन्या और दारे सलाम तंजानिया में अमेरिकी दूतावासों पर बमबारी हुई तो अमेरिका ने इस हेतु आतंकवादी संगठन अलकायदा को जिम्मेदार मानते हुए सूडान एवं अफगानिस्तान में अलकायदा के संभावित ठिकानों पर क्रूज मिसाइलों से हमले किए इसे ऑपरेशन इंफिनाइट रीच नाम दिया गया इसे क्लिंटन ने संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति के बगैर एवं अंतरराष्ट्रीय कानूनों की परवाह किए बिना भी अंजाम देना अमेरिकी वर्चस्व का द्योतक है।
(d)  09/11 की घटना (ऑपरेशन इन्ड्यूरिंग फ्रीडम Operation Enduring Freedom) -11 सितंबर 2001 को 19 अरब अपहरणकर्ताओं ने चार अमेरिकी व्यवसायिक हवाई जहाज उसको हाईजैक करके वर्ल्ड ट्रेड सेंटर एवं पेंटागन के रक्षा कार्यालय पर आत्मघाती हमले करते हुए जहाज टकराए इसमें तीन हजार अमेरिकी नागरिक मारे गए अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने पूरित जवाबी कार्यवाही करते हुए आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध की घोषणा के रूप में ऑपरेशन इन्ड्यूरिंग फ्रीडम चलाया, इसमें मुख्य निशाना अलकायदा एवं अफगानिस्तान का तालिबानी शासन था | विश्व भर में हजारों के गिरफ्तारिया हुई, 2 मई 2011 को अमेरिकी नौसेना के सील कमांडो ने ऑपरेशन नेप्चून स्पीयर(Operation Naptune spear) नामक सैन्य कार्रवाई में पाकिस्तान के एबटाबाद में अलकायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन को मार गिराया इस ऑपरेशन में प्रयुक्त कोड नेम था जेरोनिमा इकियो।
(e) इराक पर आक्रमण :-  2003 (ऑपरेशन इराकी फ्रीडम) इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन के शासन को खत्म करने व इराक को सामूहिक संहार के हथियारो (weapons of mass destruction) बनाने से रोकने के लिए 19 मार्च 2000 को अमेरिका ने ऑपरेशन इराकी फ्रीडम के कूट नाम से इराक पर हमला किया अमेरिका के नेतृत्व वाले Coalition of willings  (आकांक्षियों के गठजोड़) में 40 से अधिक देश शामिल हुए । इस हमले से सद्दाम हुसैन की सरकार समाप्त हो गई लेकिन इसके विरोध में इराक में व्यापक स्तर पर जन विद्रोह हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अपनी जांच में कहा कि वेपंस ऑफ मास डिस्ट्रक्शन बनाने की मौजूदगी के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि अमेरिका का मकसद कुछ और ही था जैसे इराकी तेल भंडार पर नियंत्रण स्थापित करना और इराक में अमेरिका के पसंद की सरकार बनाना।
(f) वियतनाम युद्ध :-  शीत युद्धौत्तर दौर में डोमिनो थ्योरी जिसके अनुसार अगर एक देश कम्युनिस्ट विचारधारा अपनाता है तो तुरंत ही आसपास के सभी देश वही विचारधारा अपना लेते हैं , मध्य पूर्व एशिया में कम्युनिस्ट सरकारों के वर्चस्व के प्रसार को रोकने हेतु अमेरिका वियतनाम युद्ध में कूद पड़ा एवं अनगिनत बमबारी करके नरसंहार किया साथ ही NAPALM एवं Agent Orange जैसे रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल भी किया, यह अमेरिका ने अपना वर्चस्व सिद्ध करने हेतु ही किया था।

(g) ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या :- ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स की कुलीन  वर्ग की सेना के प्रमुख जनरल कासिम सुलेमानी की बगदाद हवाई अड्डे पर अमेरिकी ड्रोन हमले में 03 जनवरी 2020 में हत्या कर दी गई अमेरिकी रक्षा विभाग के अनुसार यह कदम विदेश में कार्यरत अमेरिकी सैन्य कर्मियों की रक्षा के लिए  उठाया आवश्यक रक्षात्मक कदम था । जनरल की हत्या अमेरिका के सैन्य शस्त्रों की सटीकता एवं अमेरिकी हितों की रक्षा हेतु किसी भी देश की धरती पर ऑपरेशन को अंजाम देना उसके सैन्य वर्चस्व का द्योतक है।

शीत युद्ध के बाद विश्व व्यवस्था :-

(i) पूंजीवादी विचारधारा का प्रचार

(ii) अमेरिका की निर्णायक भूमिका

(iii) बहु ध्रुवीय विश्व अब एक ध्रुवीय हो गया

(iv) विकासशील देशों का उदय हुआ

(v) वित्त प्रबंधन हेतु नए संगठन

स्मरणीय  शब्दावली 

》》द्विध्रुवीयता :-   यह एक व्यवस्था है  जिसमें  विश्व दो गुटों में बंट गया जैसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व का अमेरिकी एवं सोवियत संघ के रूप में दो धङों में बट जाना। 

》》एक ध्रुवीयता :- विश्व में केवल एक शक्ति का वर्चस्व होना जैसे वर्तमान में अमेरिका । 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका ही  विश्व की एकमात्र सैन्य व आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा।

》》बहुध्रुवीयता :- शक्ति का दो से अधिक बड़ी शक्तियों में विभाजन। 

》》समाजवाद :- शासन संचालन की ऐसी व्यवस्था इसमें संपत्ति पर निजी स्वामित्व की जगह पूरे समाज का नियंत्रण हो जिससे साझा सामाजिक हितों पर ज्यादा अच्छी तरह से ध्यान दिया जा सके।

》》 साम्यवाद -एक आर्थिक सिद्धांत जिसमें संपत्ति का सामूहिक स्वामित्व एक वर्गहीन समाज की ओर जाता है। सोवियत संघ में सरकार का रूप जिसमें राज्य के पास उत्पादन के सभी साधन थे और इसका नेतृत्व एक केंद्रीकृत, सत्तावादी पार्टी द्वारा किया जाता था। इसे संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकतंत्र के विरोध के रूप में देखा गया था।

》》 ट्रूमैन डॉक्ट्रिन (1947) -अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने यूरोप तथा अन्य क्षेत्रों में साम्यवाद के प्रसार को रोकने की प्रतिज्ञा की थी और अमेरिका को ऐसे देशों को आर्थिक तथा सैनिक सहायता देने को बाध्य किया जिनके स्थायित्व को साम्यवाद से खतरा दिखता था।

》》 मार्शल प्लान (1948-1952) -यूरोप के पुनर्निर्माण के लिए ऋण देने की योजना

》》शॉक थेरेपी :- 1992 में वाशिंगटन सहमति के बाद वर्ल्ड बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा प्रतिपादित मॉडल इसमें 2nd World के देशों में तीव्र गति से उदारीकरण और पूंजीकरण के विचारों का प्रसार करना था परंतु इनसे अवस्था नष्ट हो गई और राजनीतिक संकट उत्पन्न हो गया जो आज वर्तमान में अजरबैजान का नागरणो और चेचन्या यूक्रेन किर्गिस्तान सीरिया की समस्या को जन्म दियाअंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व बैंक द्वारा निर्देशित; रूस, पूर्वी यूरोप एवं मध्य एशिया के देशों को पूंजीवाद की तरफ संक्रमण कराने हेतु USA जैसे पूंजीवादी देशों द्वारा बनाया गया विशेष मॉडल । The First World consisted of the U.S., Western Europe and their allies. The Second World was the so-called Communist Bloc: the Soviet Union, China, Cuba and friends. The remaining nations, which aligned with neither group, were assigned to the Third World

》》CIS (स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रकुल) :- 1993 में पूर्ववर्ती सोवियत संघ से यूक्रेन व बेलारूस द्वारा गठित एक ढीला ढाला संघ जिसमें बाद में मध्य एशिया के कुछ अन्य गणराज्य भी शामिल हुए।

》》 राष्ट्र राज्यो का उदय –  ऐसे देश जिनके पास अंतरराष्ट्रीय संबंधों को चलाने हेतु सॉफ्ट पावर एवं हार्ड पावर दोनों होती है उन्हें राष्ट्र राज्य कहते हैं । प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक जॉर्ज लिस्का ने अपनी पुस्तक Nations in Alliance मैं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में संधि एवं संघर्ष दोनों की महत्वता समान रूप से आवश्यक मानी है।

》》डोमिनो सिद्धांत -1950 से 1980 के दशक का एक प्रमुख सिद्धांत था, जिसमें कहा गया था कि यदि किसी क्षेत्र में एक देश साम्यवाद के प्रभाव में आता है, तो आसपास के देश एक डोमिनोज़ प्रभाव का पालन करेंगे। दुनिया भर में अमेरिकी हस्तक्षेप की आवश्यकता को सही ठहराने के लिए शीत युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य प्रशासन द्वारा डोमिनोज़ सिद्धांत का उपयोग किया गया था।

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》》एबीएम (ABM) – एंटी-बैलिस्टिक मिसाइलों (एबीएम) को उनके लक्ष्यों तक पहुंचने से पहले बैलिस्टिक मिसाइलों (परमाणु हथियार ले जाने वाले रॉकेट) को शूट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

》》 हथियारों की दौड़(Arms Race)– सैन्य श्रेष्ठता हासिल करने के प्रयास में सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों द्वारा बड़े पैमाने पर सैन्य निर्माण, विशेष रूप से परमाणु हथियारों का।

》》 टूटा तीर (Broken Arrow) – एक परमाणु बम जो या तो खो जाता है, चोरी हो जाता है, या गलती से लॉन्च हो जाता है जो परमाणु दुर्घटना का कारण बनता है। हालांकि शीत युद्ध के दौरान टूटे हुए तीरों ने शानदार फिल्म प्लॉट किए, लेकिन सबसे गंभीर वास्तविक जीवन में टूटा हुआ तीर 17 जनवरी, 1966 को हुआ, जब यू.एस. बी -52 (A Strategic heavy lift Bomber aircraft) स्पेन के तट पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। हालांकि बी -52 में सवार सभी चार परमाणु बमों को आखिरकार बरामद कर लिया गया, दुर्घटनाग्रस्त स्थल के आसपास बड़े क्षेत्रों में रेडियोधर्मी सामग्री दूषित हो गई।

》》 Checkpoint Charlie – जब बर्लिन की दीवार ने शहर को विभाजित किया तो पश्चिम बर्लिन और पूर्वी बर्लिन के बीच एक क्रॉसिंग पॉइंट था।

》》 रोकथाम (Containment) – शीत युद्ध के दौरान मौलिक अमेरिकी विदेश नीति जिसमें अमेरिका ने इसे अन्य देशों में फैलने से रोककर साम्यवाद को रोकने की कोशिश की।

》》 DEFCON –“रक्षा तत्परता की स्थिति” के लिए एक संक्षिप्त शब्द। इस शब्द के बाद एक नंबर (एक से पांच) होता है जो अमेरिकी सेना को खतरे की गंभीरता को सूचित करता है, DEFCON 5 सामान्य, शांतिपूर्वक तत्परता का प्रतिनिधित्व करता है जबकि DEFCON 1 , जो अधिकतम बल तत्परता, यानी युद्ध की आवश्यकता की चेतावनी देता है।

》》 निरोध सिद्धांत (Deterrence Theory)– एक सिद्धांत जिसने किसी भी संभावित हमले के लिए एक विनाशकारी जवाबी हमले की धमकी देने के लिए सैन्य और हथियारों के बड़े पैमाने पर निर्माण का प्रस्ताव रखा। जिसका उद्देश्य हमले को रोकने, या किसी को हमला करने से रोकना था।

》》 फालआउट शेल्टर (Fallout Shelter) – भूमिगत संरचनाओं, भोजन और अन्य आपूर्ति के साथ भंडारित, जिसका उद्देश्य परमाणु हमले के बाद रेडियोधर्मी पतन से लोगों को सुरक्षित रखना था।

》》 प्रथम प्रहार क्षमता (First Strike Capability) -एक देश की दूसरे देश के खिलाफ आश्चर्यजनक, बड़े पैमाने पर परमाणु हमला करने की क्षमता। पहले आक्रमण का लक्ष्य सबसे ज्यादा मिटा देना है, अगर विरोधी देश के सभी हथियारों और विमानों को नहीं छोड़ते हैं, तो वे जवाबी हमला करने में असमर्थ हैं।

》》 ग्लासनोस्त (Glasnost)– मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा सोवियत संघ में 1980 के दशक के उत्तरार्ध के दौरान एक नीति को बढ़ावा दिया गया था जिसमें सरकारी गोपनीयता (जिसमें सोवियत नीति के पिछले कई दशकों की विशेषता थी) को हतोत्साहित किया गया था और खुली चर्चा और सूचना के वितरण को प्रोत्साहित किया गया था। यह शब्द रूसी में “खुलेपन” का अनुवाद करता है।

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》》 हॉटलाइन -1963 में व्हाइट हाउस और क्रेमलिन के बीच संचार की एक सीधी रेखा। अक्सर इसे “लाल टेलीफोन” कहा जाता है।

》》 ICBM – अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें ऐसी मिसाइलें थीं जो हजारों मील तक परमाणु बम ले जा सकती थीं।

》》 लोहे का पर्दा (IRON CURTAIN)– विंस्टन चर्चिल द्वारा पश्चिमी लोकतंत्रों और सोवियत-प्रभावित राज्यों के बीच बढ़ते विभाजन का वर्णन करने के लिए एक भाषण में इस्तेमाल किया गया एक शब्द।

》》 सीमित परीक्षण प्रतिबंध संधि (Limited Test Ban Treaty) -5 अगस्त, 1963 को हस्ताक्षरित, यह संधि वायुमंडल, बाहरी अंतरिक्ष या पानी के भीतर परमाणु हथियारों के परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक विश्वव्यापी समझौता है।

》》 मिसाइल का अंतर (Missile Gap)- अमेरिका के भीतर यह चिंता कि सोवियत संघ ने परमाणु मिसाइलों के भंडार में USA को पार कर लिया था।

》》 पारस्परिक रूप से विनाश का आश्वासन (Mutually assured destruction) – MAD (एमएडी) की गारंटी थी कि अगर एक महाशक्ति ने बड़े पैमाने पर परमाणु हमला किया, तो दूसरे ने भी बड़े पैमाने पर परमाणु हमला किया और दोनों देश नष्ट हो जाएंगे। यह अंततः दोनों महाशक्तियों के बीच एक परमाणु युद्ध के खिलाफ प्रमुख बाधा बन गया।

》》 पेरेस्त्रोइका– जून 1987 में मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा पेश की गई, जो सोवियत अर्थव्यवस्था को विकेंद्रीकृत करने की आर्थिक नीति थी। यह शब्द रूसी में “पुनर्गठन” का अनुवाद करता है।

》》 SALT – रणनीतिक शस्त्र सीमा संधि (SALT) सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच नए परमाणु हथियारों की संख्या को सीमित करने के लिए बातचीत थी। पहली वार्ता 1969 से 1972 तक विस्तारित हुई और इसके परिणामस्वरूप SALT I (पहली सामरिक शस्त्र सीमा संधि) हुई, जिसमें प्रत्येक पक्ष ने अपने रणनीतिक बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्चरों को अपने मौजूदा नंबरों पर रखने के लिए सहमति व्यक्त की और पनडुब्बी-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइलों (SLBM) में वृद्धि के लिए प्रदान किया। ) अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों (आईसीबीएम) की संख्या में कमी के अनुपात में। दूसरे दौर की वार्ता 1972 से 1979 तक विस्तारित हुई और इसके परिणामस्वरूप SALT II (दूसरा रणनीतिक शस्त्र सीमा संधि) हुआ जिसने आक्रामक परमाणु हथियारों पर एक व्यापक सीमा प्रदान की।

》》 अंतरिक्ष में दौड़ (Space Race) -अंतरिक्ष में तेजी से प्रभावशाली उपलब्धियों के माध्यम से प्रौद्योगिकी में अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक प्रतियोगिता। अंतरिक्ष की दौड़ 1957 में शुरू हुई जब सोवियत संघ ने पहला उपग्रह, स्पुतनिक को सफलतापूर्वक लॉन्च किया।

》》 स्टार वार्स (Star Wars) –अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की योजना के आधार पर स्टार (स्टार वार्स मूवी ट्रायोलॉजी पर) ने अंतरिक्ष आधारित प्रणाली का अनुसंधान, विकास और निर्माण करने की योजना बनाई है, जो आने वाली परमाणु मिसाइलों को नष्ट कर सके। 23 मार्च, 1983 को पेश किया गया, और आधिकारिक तौर पर रणनीतिक रक्षा पहल (एसडीआई) कहा गया।

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