राजस्थान की महत्त्वपूर्ण विभूतियां (Eminent Personalities of Rajasthan)
बप्पा रावल :-
इन्हें ‘कालभोज’ के नाम से भी जाना जाता हैं।इन्होंने 8वीं शताब्दी में मेवाड़ में ‘रावल वंश’ की स्थापना की। पहले इनका शासन उदयपुर के निकट स्थित आहड़ नामक स्थान से होता था। लेकिन बाद में उन्होंने चितौड़ को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया तथा उसे अपनी राजधानी बना लिया। इन्होंने एकलिंग जी में एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया।
पृथ्वीराज चौहान :-
पृथ्वीराज अपने काल का एक महान योद्धा एवं राजस्थान के राजपूत राजाओं का सिरमौर था। इनका विवाह जयचन्द की पुत्री संयोगिता के साथ हुआ था। पृथ्वीराज ने 1191ई॰ में तराइन के प्रथम युद्ध में मोहम्मद गौरी को बुरी तरह से परास्त किया लेकिन 1192ई॰ में तराइन के द्वितीय युद्ध में जयचन्द की निचता एवं अपनी दुर्बलताओं और युद्ध की पर्याप्त नीति न बनाने की वजह से उसे हार का सामना करना पड़ा। उसकी पराजय के कारण उत्तरी भारत का राज्य सदैव के लिए मुस्लिम शासकों के हाथ में चला गया।
महाराणा हम्मीर :-
यह 13वीं शताब्दी के अन्त में रणथंभौर का शासक था। इसे चौहान वंश का दूसरा महान योद्धा कहा जाता हैं। इन्होंने अपने शासन के 18 वर्षों तक अनेक युद्ध किये और उसमें विजय भी प्राप्त की। 1890ई॰ में जलाउद्दीन के आक्रमण को विफल कर दिया, लेकिन 1301ई॰ में, रणथंभौर के युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी की चालाकियों से वह पराजित हो गया और युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गया ।
राणा लाखा :-
इन्होंने मारवाड़ के राव रणमल की बहन हंसाबाई से विवाह किया, जबकि हंसाबाई के विवाह का प्रस्ताव लाखा के पुत्र राणा चूड़ा के लिए भेजा गया था। हंसाबाई ने राणा चूड़ा से विवाह करने से इन्कार कर दिया।
राणा चूड़ा :-
यह राणा लाखा का पुत्र था। राव रणमल ने अपनी बहन हंसाबाई के विवाह का प्रस्ताव इन्हें भेजा था जिसे राणा चूड़ा ने ठुकरा दिया था। इन्होंने हंसाबाई के पुत्र मोकल के पक्ष में मेवाड़ का सिंहासन त्याग दिया।
राणा कुम्भा :-
यह राणा लाखा का पौत्र तथा मोकल एवं सौभाग्य देवी का पुत्र था। इन्होंने मालवा के युद्ध में सुल्तान खिलजी को पराजित किया । इसी विजय के उपलक्ष्य में उन्होंने चितौड़गढ़ में ‘विजय स्तम्भ’ का निर्माण कराया । इन्होंने अनेक मंदिरों का भी निर्माण कराया, जिसमें ‘सास बहु का मंदिर’ प्रमुख हैं। 1469ई॰ में इनकी हत्या इन्हीं के पुत्र राव ऊदा ने कर दी।
महाराणा संग्राम सिंह :-
इन्हें भारतीय इतिहास में राणा सांगा के नाम से जाना जाता हैं। इन्होंने इब्राहिम लोदी की सेना को दो बार पराजित किया और चंदेरी के किले पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इनके शौर्य और पराक्रम का लोहा तत्कालीन गुजरात और मालवा के सुल्तानो ने भी माना था। इनका अन्तिम युद्ध मुगल वंश के संस्थापक बाबर के साथ 1527ई॰ में भरतपुर के निकट खानवा के मैदान में हुआ था। इस युद्ध में बाबर की जीत हुई । इस युद्ध में पराजय के साथ ही राजपूतों की सारी आशाएं समाप्त हो गई।
राणा उदय सिंह :-
ये राणा सांगा के पुत्र थे। इनकी रक्षा के लिए पन्ना धाय ने अपने पुत्र का बलिदान कर दिया था। 1568ई॰ में जब मुगल सम्राट अकबर ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की तब उदय सिंह चित्तौड़ को छोड़कर अरावली की पहाड़ियों में चले गए जहां उन्होंने उदयपुर की नींव डाली और उसे अपनी राजधानी बनाया। 1572ई॰ में इनकी मृत्यु हो गई।
महाराणा प्रताप :-
ये राणा उदय सिंह के पुत्र तथा राणा सांगा के पौत्र थे। ये राणा उदय सिंह के पश्चात् मेवाड़ की गद्दी पर आसीन हुए। ये जीवन पर्यन्त मुगल शासक अकबर के विरुद्ध युद्ध करते रहे परन्तु कभी भी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की। इन्होंने अपना स्वाभिमान रखने के लिए आमेर के राजा के साथ भोजन नहीं किया, वरन् उनका सामना हल्दी घाटी के मैदान में मुगल सेना के विरुद्ध किया । इनका प्रिय घोड़ा चेतक था जो कि हल्दी घाटी के युद्ध में मारा गया । इन्होंने मुगल सम्राट अकबर के समक्ष अपना सिर कभी नहीं झुकाया। 1597ई॰ में इनका निधन हो गया।
भामाशाह :-
ये महाराणा प्रताप के मंत्री थे। हल्दी घाटी के युद्ध के पश्चात् जब महाराणा प्रताप के समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया तब उस समय इन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति लाकर राणा को दी जिससे राणा 12 वर्ष तक 25 हजार सेना अपने पास रख सकते थे। अपने इस कृत्य के कारण ही इन्हें ‘ मेवाड़ का उद्घारक तथा दानवीर ‘ कहा जाता हैं।
राणा अमर सिंह :-
ये महाराणा प्रताप के पुत्र थे जो महाराणा प्रताप के पश्चात् मेवाड़ के सिंहासन पर आसीन हुए। इन्होंने भी मुगलों के विरुद्ध कई वर्षों तक युद्ध किया, परन्तु बाद में इन्होंने जहांगीर का आधिपत्य स्वीकार कर लिया। इसके परिणामस्वरूप मेवाड़ में शान्ति की स्थापना हुई।
जयमल और पत्ता :-
ये दोनों राजपूत सरदार थे। 1567ई॰ में जब राणा उदय सिंह चित्तौड़ छोड़कर उदयपुर चले गए तब चितौड़ के किले की रक्षा का भार इन्हीं दोनों राजपूत सरदार ने अपने हाथ में लिया था। मुगल सम्राट अकबर की सेनाओं से इन्होंने किले की रक्षा की। एक दिन जब जयमल रात्रि में किले की मरम्मत करा रहा था, तब शत्रु ने उसे पहचान कर गोली मार दी। पत्ता ने भी किले की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
राव जोधा :-
ये मारवाड़ के एक महान शासक थे। इन्होंने जोधपुर नगर को बसाया तथा वहां पर एक किले का निर्माण कराया।
पन्ना धाय :-
यह राणा उदय सिंह की धाय थी। इन्होंने अपने बच्चे को उदय सिंह बताकर बनवीर से उसे मरवा दिया। इस प्रकार उन्होंने उदय सिंह के प्राणों की रक्षा की। और राजपूत सरदारों की सहायता से सुरक्षित रूप से उसे कुंभलगढ़ के किले में भेज दिया। पन्ना धाय की स्वामीभक्ति इतिहास में प्रसिद्ध हैं।
मीराबाई :-
यह मेवाड़ के राणा उदय सिंह के भाई भोजराज की पत्नी तथा मेड़ता के सरदार रतन सिंह की पुत्री थी। ये बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लीन रहा करती थी। भोजराज को यह व्यवहार बिल्कुल पसन्द नहीं था। अतः उन्होंने उसे मारने के कई प्रयास किए लेकिन दैवीय शक्ति के कारण वह प्रत्येक बार बच गई। एक जहर का प्याला भी उसके पास पीने को भेजा गया था । एक काला विषधर सर्प भी एक टोकरी में रखकर उसके पास भेजा गया, परन्तु प्रत्येक बार मीराबाई बच गई। मीराबाई के पद भारतीय हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।
महाराजा गंगा सिंह :-
ये बीकानेर के शासक थे। इन्होंने गंगनहर का निर्माण कराया तथा गंगानगर को बसाया।
इन्हें आधुनिक भारत का भगीरथ कहा जाता हैं।
राव बीकाजी :-
ये बीकानेर नगर के संस्थापक थे। इनकी गणना योग्यतम शासकों में होती हैं।
हाड़ी रानी :-(सलह कंवर) :-
यह राणा गज सिंह के सरदार चूंडावत की दुल्हन थी। चूंडावत इस पर बड़े आसक्त थे। इसी बीच चूंडावत को युद्ध क्षेत्र में जाना पड़ा। चूंडावत ने अपने सेनापति को भेजकर रानी से याददाश्त की वस्तु मंगवाई। इस पर रानी ने अपना सिर काटकर सेनापति को दे दिया। चूंडावत हाड़ी रानी के सिर को गले में लटकाकर युद्ध के लिए निकला और विजय भी प्राप्त की।
गोरा और बादल :-
ये दोनों राजपूत सरदार रानी पद्मनी के रिस्तेदार थे। जब अलाउद्दीन खिलजी ने धोखे से राणा रतन सिंह को बन्दी बना लिया तब इन दिनों योद्धाओं ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। केवल 700 योद्धाओं के बल पर इन्होंने खिलजी की विशाल सेना का डटकर मुकाबला किया। 12 वर्ष के बादल ने बहादुरी से लड़कर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए जबकि गोरा अनेक सैनिकों को मारकर अन्त में स्वयं भी मारा गया।
रानी पद्मनी :-
यह मेवाड़ के राणा रतन सिंह की पत्नी थी।जो अपनी सुन्दरता के कारण चारों ओर प्रसिद्ध थी। संभवतः इसकी सुन्दरता पर मोहित होकर उसे प्राप्त करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। अलाउद्दीन खिलजी ने अत्यंत चालाकी से राणा रतन सिंह को अपने खेमे में कैद कर लिया। राणा रतन सिंह को मुक्त कराने गए गोरा और बादल लड़ते-लड़ते मारे गए। इधर रानी पद्मनी ने अन्य राजपूतानियों के साथ आग में कूदकर जौहर किया और अपने धर्म की रक्षा की।
जयनायक
बलवंत सिंह मेहता
(जननायक)
जन्म (1904) — डूंगरपुर
निधन (2003) — उदयपुर
मेवाड़ प्रजामंडल के प्रथम अध्यक्ष बने और अनेक बार उदयपुर में सत्याग्रह चलाते हुए गिरफ्तार हुए।
आप क्रांतिकारियों के सहयोगी बने रहे और हल्दीघाटी में स्थानीय युवकों को बम बनाने की प्रक्रिया सिखाई। आप भारतीय संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य भी रहे।
जयनायक
भोगीलाल पंड्या
जन्म (1904)— डूंगरपुर
वागड़ सेवा मंदिर
वागड़ के गांधी नाम से प्रसिद्ध।
आपने 15 वर्ष की आयु में बच्चों और बड़ों के लिए पाठशालाएं स्थापित करना आरंभ किया। आपके द्वारा स्थापित विद्यालय वागड़ सेवा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
आपने रियासती शासन के विरुद्ध अनेक सभाओं का आयोजन किया और 1944 में डूंगरपुर प्रजामंडल का गठन किया।
आप राजस्थान के मंत्रिमंडल में मंत्री बने और राजस्थान खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे।
आप एक सत्यनिष्ठ निष्ठावान और लोक सेवा के लिए पूर्णतया समर्पित गांधी युग के एक जीवंत प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं।
जयनायक
मास्टर आदित्येन्द्र
जन्म (1907)— भरतपुर
1942 में आप भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार हुए।
1954 से 1964 तक राज्यसभा के सदस्य रहे तथा आप राजस्थान विधानसभा के सदस्य व मंत्री भी रहे।
क्रांतिकारी नेता
केसरी सिंह बारहठ
(1872-1941)
जन्म (1872)— देवपुरा खेड़ा गांव (शाहपुरा रियासत)
आपने मेवाड़ के महाराणा फतेहसिंह को ’चेतावणी रा चूंगट्या’ के रूप में सोरठे लिखकर लॉर्ड कर्जन के दिल्ली दरबार में जाने से रोका था।
अमर शहीद प्रताप सिंह बारहठ इन्हीं के पुत्र थे।
उनका सारा परिवार राजस्थान के स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद हो गया।
क्रांतिकारी व अमर शहीद
राव गोपाल सिंह
रामगोपाल सिंह गुप्त सैनिक संगठन वीर भारत सभा से जुड़े हुए थे। आपका मुख्य कार्य क्रांतिकारियों के लिए अस्त्र शस्त्र की व्यवस्था करना था।
क्रांतिकारियों ने फरवरी 1915 को समस्त भारत में एक ही दिन क्रांति करने का निर्णय ले लिया था। अजमेर नसीराबाद पर कब्जा करने का उत्तरदायित्व गोपाल सिंह व इनके सहयोगियों को सौंपा था।
इस योजना की सूचना अंग्रेजों को लग जाने से आपको गिरफ्तार कर लिया गया।
क्रांतिकारी व अमर शहीद
सागरमल गोपा
जन्म— जैसलमेर
पु. – गुंडा शासन?
आप एक निष्ठावान कार्यकर्ता थे जिन्होने तत्कालीन शासकों की गलत नीतियों का डटकर विरोध किया।
आपने अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के अधिवेशनों व असहयोग आंदोलन में भाग लेकर क्रांतिकारी गतिविधियों को जारी रखा।
1941 में राजद्रोह के अभियोग में गिरफ्तार कर लिया गया। आपको जेल में कठोर यातना दी गई और जिंदा जला दिया गया।
क्रांतिकारी व अमर शहीद
प्रताप सिंह बारहठ
ठा. केसरी सिंह बारहठ के पुत्र
आपको लॉर्ड हार्डिंग के जुलूस पर बम फेंकने व क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण बंदी बना लिया गया और मई 1918 में मात्र 22 वर्ष की आयु में शहीद हुए।
बरेली जेल में आपसे राज उगलवाने के लिए घंटों मेहनत कराने वाले चार्ल्स क्लीवलैंड ने जब कहा कि तुम्हारी मां तुम्हारे लिए बहुत रोती है, तब प्रताप ने जवाब दिया “मैं सैकड़ों माताओं के रोने का कारण नहीं बन सकता। मेरी मां को रोने दो जिससे अन्य कोई मां न रोने पाए।”
क्रांतिकारी व अमर शहीद
रुपा जी कृपा जी
बेगू में किसान आंदोलन के समय शहीद (1923)
बेगू में किसान आंदोलन के दौरान जब रूपाजी कृपा जी 13 जुलाई 1923 को किसानों की सभा में भाषण दे रहे थे तब अंग्रेज अफसर ट्रेंस ने गोली चलवा दी और अंग्रेजों की गोली से दोनों शहीद हुए।
क्रांतिकारी व अमर शहीद
नाना भाई खांट (भील)
डूंगरपुर राज्य में जन जागृति हेतु सेवा संघ द्वारा पाठशाला खोली गई। राज्य के पुलिस अधिकारियों ने नाना भाई को पाठशाला बंद करने के लिए कहा।
आप के द्वारा कर्तव्य परायणता पर अडिग रहते हुए पाठशाला बंद करने से मना करने पर पुलिस ने इनकी हत्या कर दी।
क्रांतिकारी व अमर शहीद
कालीबाई
नानाभाई के शहीद होते ही पाठशाला के दूसरे अध्यापक सांगाभाई को भी फौज ने क्रूरता से पीटा और उन्हें वाहन के पीछे रस्सी से बांधकर घसीटा जाने लगा।
तभी 13 वर्षीय भील बालिका काली बाई ने अपनी दांतली से अपने गुरु सांगाभाई के कमर पर बंधी रस्सी काट दी। सांगाभाई को बचा लिया गया पर फौज की गोली से कालीबाई शहीद हो गई।
Hiralal shastri (हीरालाल शास्त्री)
जन्म-24 नवंबर 1899(जोबनेर, जयपुर)
वनस्थली विद्यापीठ नामक महिला शिक्षण संस्थान के संस्थापक शास्त्री जी भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के प्रधानमंत्री तथा 30 मार्च 1949 को वहतर राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री बने तथा टोंक जिले के निवाई तहसील के वनस्थली ग्राम में स्थित जीवन कुटीर नामक संस्था के संस्थापक शास्त्री जी 1958 से 1962 तक सवाई माधोपुर के लोकसभा सदस्य रहे तथा 28 दिसंबर 1974 को स्वर्ग सिधार गए। प्रत्यक्ष जीवन शास्त्र नामक पुस्तक का लेखन किया एवं प्रशिक्षण नमो नमो नमः गीत लिखा।
पंडित हरिनारायण शर्मा
अलवर राज्य में जनजाति जाग्रति सेवा का पुजारी इन्हें कहा जाता हैं। उन्होंने पिछड़ी जातियों, हरिजनों तथा अन्य कथित जातियों के उत्थान के लिए कार्य किया तथा वाल्मीकि संग आदिवासी संघ और अस्पृश्यता के लिए कार्य किया।
श्यामजी कृष्ण वर्मा
राजस्थान के सभी क्रांतिकारीयों के प्रेरणा स्त्रोत मागदर्शन जो स्वामी दयानंद सरस्वती की प्ररेणा से राजस्थान में क्रांतिकारी गतिविधियों के मुख्य सुधारक बने।श्याम जी स्वदेशी वस्तुओं के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने इंग्लैंड में इंडिया हाउस की स्थापना की। इनके एक शिष्य मदनलाल ढींगरा ने 1 जुलाई 1992 को भारत सचिव कर्जन वाइली को गोली मार दी।
स्वामी केशवानंद
मूल नाम – वीरमा
उदासी मत के गुरु कुशलता से दीक्षित। उन्होंने बीकानेर राज्य में ग्रामोत्थान विद्यापीठ संगरिया का निर्माण किया। तथा मरुभूमि में उन्होंने शिक्षा प्रसार का महत्वपूर्ण कार्य किया।
पंडित जुगल किशोर चतुर्वेदी
भरतपुर के स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा,जिनका जन्म मथुरा के शौक नामक प्राचीन कस्बे में हुआ।
जनता प्यार से उन्हें दूसरा जवाहरलाल नेहरू कहती हैं।
Vaidya Mangaram (वैद्य मंगाराम)
बीकानेर रियासत में आजादी के आंदोलन के जनक कहे जाते हैं। 1936 में इन्होंने बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना की। 1946 में यह बीकानेर राज्य प्रजा परिषद् के अध्यक्ष बने और दूधवाखारा किसान आंदोलन में भाग लिया।
जीतमल पुरोहित
जैसलमेर के स्वतंत्रता सेनानी में श्री पुरोहित पहले व्यक्ति थे। जिन्होंने जैसलमेर में तिरंगा झंडा फहराया था। जैसलमेर में निर्वाचित किए जाने के बाद उन्होंने बीकानेर का जन आंदोलन भी संभाला था।
रामनारायण चौधरी
जन्म-1800ई॰(नीमकाथाना सीकर)
1934 में गांधी जी की दक्षिणी भारतीय हरिजन यात्रा के दौरान हिंदी सचिव के रूप में चौधरी ने राजस्थान में जन चेतना के लिए नया राजस्थान नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया तथा तरुण राजस्थान के संपादक चौधरी ने 1932 में हरिजन सेवक संघ की स्थापना की और राजस्थान शाखा का कार्यभार संभाला।
हरिदेव जोशी
जन्म-17 दिसंबर 1921(खंडू ग्राम)
बांसवाड़ा बाबा लक्ष्मण दास की प्ररेणा से इन्होंने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया तथा तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। हरिदेव जोशी ने दैनिक नवजीवन को कांग्रेस संदेश नमो पत्रिकाओं का संपादन किया। डूंगरपुर के आदिवासियों को राष्ट्रीय आंदोलन के लिए जाग्रत किया।
मोहनलाल सुखाडिया
जन्म-31 जुलाई 1916(नाथद्वार, राजसमंद)
राजस्थान के निर्माता मोहनलाल सुखाडिया 13 नवंबर 1956 को राजस्थान के मुख्यमंत्री बने तथा 17 वर्ष तक राजस्थान में शासन किया। राजस्थान में सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का गौरव प्राप्त हैं। उन्होंने इंदुबाला के साथ अंतर्जातीय विवाह करके मेवाड़ में रहते सामाजिक जीवन में क्रांति लाई। राजस्थान में जागीरदार प्रथा के उन्मूलन में श्री सुखाडिया की भूमिका सर्वप्रथम राजस्व मंत्री के रूप में तथा तत्पश्चात् मुख्यमंत्री के रूप में महत्वपूर्ण रही। राजस्थान में मुख्यमंत्री के पश्चात् वे दक्षिण भारत के 3 राज्य क्रम से, कनार्टक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु के राज्यपाल रहे।
दामोदर दास राठी
जन्म-8 फरवरी,1884(पोकरण, जयपुर)
ये एक महान व्यक्ति थे ,
जिन्होंने ब्यावर में सनातन धर्म स्कूल नवभारत विद्यालय की स्थापना की। राठी साहब क्रांतिकारियों को अन्य गतिविधियों के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करते थे।
बाबू राजबहादुर
भरतपुर के स्वतंत्रता सेनानी स्वाधीन का नया संविधान निर्मित करने के लिए बनाई गई संविधान सभा में मनोनित किए गए। मध्यप्रदेश के 2 प्रतिनिधियों में से एक श्री राजबहादुर तथा दूसरे अलवर के श्रीराम चंद्र उपाध्याय थे। यह केंद्रीय मंत्रीमंडल में नेहरू सरकार के उप मंत्री भी रहे।
शोभाराम कुमावत
अलवर निवासी श्री शोभाराम अलवर प्रजामंडल के साथ सक्रिय रूप से जुड़े रहे। 18 मार्च 1948 को यह मत्स्य संघ के प्रधानमंत्री बने। राजस्थान सरकार द्वारा सहकारिता आंदोलन के अध्ययन के लिए इनकी अध्यक्षता में शोभाराम कमेटी का गठन किया गया।
ऋषि दत्त मेहता
बूंदी के स्वतंत्रता सेनानी उन्होंने बूंदी राज्य लोक परिषद की स्थापना कर बूंदी में स्वतंत्रता आंदोलन को प्रोत्साहित किया। तथा ब्यावर में साप्ताहिक राजस्थान नामक प्रकाशन किया। उनका समस्त परिवार आजादी के आंदोलन में जेल गया था।
उपेंद्र नाथ त्रिवेदी
बांसवाड़ा के स्वतंत्रता सेनानी भूपेंद्र नाथ ने मुंबई से एक साप्ताहिक पत्र संग्राम का प्रकाशन शुरू किया। उन्होंने आदिवासियों के ज़ुल्म के खिलाफ संगठित करने और चेतना लाने का कार्य शुरू किया। बांसवाड़ा प्रजामंडल के यह प्रमुख नेता रहे। उतरदायी लोकप्रिय सरकार में 18 अप्रैल 1948 को मुख्यमंत्री बनाए गए।
Gokul g Varma (गोकुल जी वर्मा)
भरतपुर की जन जाग्रति में इन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। वहां की जनता इन्हें भरतपुर का सेवर कह कर सम्बोधित करती थी।
राव गोपाल सिंह खरवा
राजपूताने में वीर सभा के नाम से कुछ सैनिक संगठन बनाया गया था, जिसके संस्थापक एवं संचालक केसरी सिंह बारहठ के साथ खारवा के राव गोपाल सिंह का महत्वपूर्ण योगदान था। क्रांतिकारियों को धन एवं शस्त्र दिलाने का कार्य राव गोपाल सिंह खरवा ने किया। 21 फरवरी 1915 को तय की गई शस्त्र क्रांति में राजपूताना राव गोपाल सिंह खरवा एवं सेठ दामोदर दास राठी को ब्यावर
और भूप सिंह को अजमेर, नसीराबाद पर कब्जा करने का कार्य सौंपा गया।
बालमुकुंद बिरसा
जोधपुर के वीर अमर शहीद।
इनकी मृत्यु 19 जून 1920 को जोधपुर केंद्रीय कारागृह में भूख हड़ताल के दौरान तबीयत खराब होने से अस्पताल में मृत्यु हो गई।
कप्तान दुर्गादास चौधरी
जन्म-1906(नीमकाथाना)
इनके बड़े भ्राता श्री रामनारायण चौधरी भी बड़े देश भक्त थे तथा गांधीजी के निकटतम सहयोगी थे। 1921 में यह असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। 1936 में जब श्रीनारायण चौधरी ने नवज्योति साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया तो दुर्गादास प्रसाद भी इससे जुड़ गए तथा 1941 में इस पत्र का पूर्ण दायित्व उनके कंधों पर आ गया।
Baba Narasimha Das (बाबा नरसिंह दास)
राजस्थान में स्वाधीनता संग्राम के अंतिम भामाशाहों और सेठ नरसिंह दास अग्रवाल में से एक थे। जिन्होंने अपने लक्ष्य पूर्ति के लिए पत्र और मन के साथ ही अपनी पारिवारिक संपत्ति भी न्योछावर कर दी।
Pandit Abhinn Hari( पंडित अभिन्न हरि)
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सुधारक,झुंजार पत्रकार और ओजस्वी कवि पंडित विनय हरि का मूल नाम बद्री लाल शर्मा था। कोटा में इन्होंने लोक सेवक साप्ताहिक समाचार पत्र प्रांरभ किया। 1942 की अगस्त क्रांति में महात्मा गांधी के आह्वान पर 8 से 9 अगस्त 1942 को मुंबई ग्वालियर टैंक मैदान में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में कोटा से सम्मिलित होने वाले एकमात्र प्रतिनिधि थे। 1941 में ये कोटा राज्य प्रजामंडल के अध्यक्ष बने।
बृज मोहन लाल शर्मा
ब्यावर के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी श्री शर्मा मजदूर दलितों के मसीहा माने जाते थे। 1955 में उन्होंने अजमेर में मध्यस्थ उन्मूलन अधिनियम लागू किया। इन्होंने ब्यावर में राष्ट्रीय मिल संघ की स्थापना की।
Govind Giri (गोविंद गिरी)
इन्होंने संप सभा की स्थापना करके आदिवासी भीलों के लिए समाज में धर्म सुधार आंदोलन चलाया। 1908 में उनकी कार्यशैली मानगढ़ पहाड़ी पर एक वार्षिक सभा के दौरान अंग्रेजी सेना ने फायरिंग कर दी जहां भीषण नरसंहार किया।
Changan Raj Chawpatani(छगन राज चौपासनी वाला)
26 जनवरी 1932 में जोधपुर की धान मंडी में पहली बार तिरंगा फहराया। 1942 में उत्तरदायी शासन के लिए चलाए गए आंदोलन के दौरान गिरफ्तार करके जोधपुर की सेंट्रल जेल सिवाना दुर्ग भिलाई महल एवं जालौर के किले में नजरबंद रखा गया।
विशंभर दयाल
राजस्थान के अंचल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी,जो हार्ड डिस्क बोमकेश तथा आजाद और भगत सिंह के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त हैं।
कपूर पाटनी
जयपुर के स्वतंत्रता सेनानी पाटनी जी ने अपना सार्वजनिक जीवन 1920 में खादी बेचने से शुरू किया। इन्होंने जयपुर प्रजामंडल की स्थापना की। प्रबंध समाज सुधारक और प्रगतिशील विचारधारा वाले श्री पाटनी ने बाल एवं वृद्धि का विरोध और विधवा विवाह का समर्थन।
चंदनमल बहड़
चूरू के स्वतंत्रता सेनानी जन्नतुल शहर के मध्य स्थित धर्म स्तूप पर तिरंगा फहराया, राष्ट्रीय गीत गाया और पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने का संकल्प दिलाया। उनके साथियों ने लंदन में आयोजित दूसरा गोलमेज सम्मेलन के अवसर पर बीकानेर राज्य के आंतक और अत्याचारों का कच्चा चिट्ठा बीकानेर दिग्दर्शन के नाम से तैयार कर हजारों नागरिकों के साथ लंदन पहुंचा दिया।
सुमनेश जोशी
जोधपुर में 1916 में जन्मे जोशी ने 16 वर्ष की आयु में ही राष्ट्रीय भावना और बहुत क्रोध कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। 1945 के अन्त में उन्होंने जोधपुर में रियायत इस पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया।
पंडित नैनू राम शर्मा
हाड़ौती क्षेत्र में प्रमुख क्रांतिकारी, जिन्होंने हाड़ौती प्रजामंडल की स्थापना की। इनकी 14 अक्टूबर 1941 को रात्रि में हत्या कर दी गई।
प्रोफेसर गोकुल लाल असावा
जन्म- 2 अक्टूबर,1921
श्री असावा 1945 में शाहपुरा राज्य प्रजामंडल के अध्यक्ष बने। विद्रोही स्वभाव निष्ठा पूर्ण संपूर्ण अद्वितीय प्रतिभा के धनी व प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी राजस्थान संघ के प्रधानमंत्री बनाए गए।1981 में इनका निधन हो गया।
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