धर्मनिरपेक्षता बनाम पंथनिरपेक्षता (Meaning of Secularism)

Editor’s Comment: कौशल भारद्वाज (धौलपुर) का आर्टिकल जो आरएएस (RAS), सिविल सेवा तथा राजस्थान एवं भारत की विभिन्न परीक्षाओं के लिए अत्यंत उपयोगी है।

पिछले दिनों भारत में कोरोना के बाद जो सर्वाधिक चर्चित शब्द रहा वह था सेक्यूलरिज्म, जिसका दूसरा कारण वह फैसला भी रहा जिसमें उच्चतम न्यायालय ने सरकार को मंदिर बनाने का फैसला दिया। तब यह चर्चा जोरों पर रही कि क्या किसी सेक्यूलर देश की सर्वोच्च विधिक संस्था सरकार को किसी धर्म विशेष का मंदिर बनाने का फैसला दे सकती है। ऐसा ही एक मौका तब आया जब माननीय प्रधानमंत्री जी ने संविधान स्थापना दिवस के मौके पर कहा कि “हमारा एक ही धर्म है संविधान” तो विपक्ष ने संविधान खतरे में है कह कर खूब हंगामा किया। अंग्रेजी शब्द सेक्यूलर काफी विवादित इसलिए है क्योंकि इसका हिंदी अर्थ धर्मनिरपेक्षता भी है एवं पंथनिरपेक्षता भी और आम लोग इसे रिलीजन से जोड़ लेते हैं तब कभी-कभी यह धार्मिक उन्माद एवं सांप्रदायिकता का कारण बन जाता है।

धर्म व पंथ में शाब्दिक तौर पर बहुत अंतर है, धर्म संस्कृत की ‘धी’ धातु से बना है जिसका अर्थ है धारण करना। ‘धारयेति इति धर्म:’ अर्थात् जो धारण करने योग्य है वही धर्म है। मनुस्मृति में धर्म के 10 लक्षण बताए हैं – धैर्य, क्षमा, मन पर नियंत्रण, चोरी ना करना, मन व वचन की शुद्धता, इंद्रिय निग्रह, शास्त्रों का ज्ञान, आत्मज्ञान, सत्य भाषण व अक्रोध। विश्व के सभी धर्मों में ये सभी तत्व मिलते हैं अर्थात सभी धर्म मूलतः एक ही हैं अंतर है भाषा का, बातों का, कहने की शैली का।

जबकि पंथ का अर्थ है पंथ, मार्ग, रास्ता जो मंजिल तक पहुंचाता हो और वह मंजिल है धर्म। मनुष्य के अंदर धर्म के 10 लक्षणों को स्थापित करने के लिए महापुरुषों ने विभिन्न मार्ग या पथ बतलाए जिसे विश्वास या उपासना कहा गया। पंथ को हम धर्म तक पहुंचने का विधान या पद्धति कह सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि विद्यार्थी का धर्म है पढ़ना तो वह किताबों से, ऑनलाइन माध्यम से, कोचिंग से पड़ता है जो कि सभी पंथ है। धर्म का उपासना पद्धति से नहीं आचरण से संबंध है जबकि पंथ का व्यवहार के तरीके से।

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ किसी धर्म का विरोध करना नहीं बल्कि सभी को अपने धार्मिक विश्वासों एवं मान्यताओं को पूरी आजादी से मानने की छूट देना है। धर्मनिरपेक्ष का अर्थ है किसी एक धर्म को ना मानने वाला जबकि पंथनिरपेक्ष का अर्थ है किसी पंथ से कोई नाता नहीं अर्थात राज्य का कोई धर्म नहीं होगा, उपासना का तरीका नहीं होगा यह गांधीजी का सर्वधर्म समभाव ही है। धर्मनिरपेक्षता में राज्य किसी धर्म को राष्ट्रीय धर्म नहीं मानता है जबकि पंथनिरपेक्षता में सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखता है।

सन् 1976 में 42 वें संविधान संशोधन के माध्यम से प्रस्तावना में ‘सेक्यूलर’ शब्द को शामिल किया गया। प्रस्तावना में शामिल सेक्यूलर शब्द का हिंदी अर्थ पंथनिरपेक्षता लिया गया ना कि धर्मनिरपेक्षता। क्योंकि विद्वानों का मानना था कि धर्मनिरपेक्षता का प्रयोग भ्रामक हो सकता है, देश के आम लोग धर्म का प्रयोग जीवन पद्धति या नैतिकता के अर्थ में लेते हैं साथ ही भारत राज्य भी सभी धर्मों से दूरी या अलगाव बना कर नहीं रख सकता इसलिए धर्मनिरपेक्षता का प्रयोग सही नहीं होगा।

ऐसा नहीं है कि 1976 के संविधान संशोधन से पहले संविधान में सेक्युलरिज्म के भाव नहीं थे। संविधान के अनुच्छेद 14,15,16 में सभी प्रकार के धार्मिक भेदभाव को नकारा है, जबकि अनुच्छेद 25 से 28 में सभी को अपने धर्मानुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता दी है एवं अनुच्छेद 29 व 30 में अल्पसंख्यकों के लिए विशेष सुरक्षा के प्रावधान किये गए हैं। केशवानंद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धर्मनिरपेक्षता को भारतीय संविधान की आधारभूत संरचना बताया है तो 1994 के बोम्माई बनाम भारत संघ मामले में सेक्युलरिज्म को संविधान का मूल ढांचा बताया है।

भारतीय संदर्भ में सेक्यूलरिज्म पर यह आरोप लगते हैं कि यह पाश्चात्य जगत से आयातित है। पश्चिम में धर्मनिरपेक्षता का उदय राजतंत्र पर चर्च का वर्चस्व तोड़ने के लिए हुआ, इसमें राज्य धर्म को पूरी तरह से नकारता है यह राज्य व धर्म के बीच संबंध विच्छेद पर आधारित है। जबकि भारत में धर्मनिरपेक्षता का विकास धार्मिक विविधता के माहौल में हुआ, राजतंत्र व धर्म के बीच सत्ता संघर्ष से नहीं। यह अंतर-धार्मिक समानता पर आधारित है, यह सर्व धर्म समभाव का अर्थ देता है। धार्मिक सहिष्णुता को विवेकानंद ने 1896 में शिकागो धर्म सम्मेलन में प्रदर्शित किया कि “मैं ऐसे धर्म का अनुयाई होने में गर्व महसूस करता हूं जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति की शिक्षा दी।”

भारतीय समाज धर्मनिरपेक्षता की अपेक्षा पंथनिरपेक्षता के अधिक नजदीक दिखता है। भारतीय समाज में पंथनिरपेक्षता की राह में कई चुनौतियां भी हैं – विभिन्न धर्मों के लिए एक समान कॉमन सिविल कोड ना होना, कभी-कभी धार्मिक उन्माद के कारण सांप्रदायिकता के बढ़ते मामले, राजनीति व धर्म का गठजोड़, धर्म के नाम पर वोट मांगने की राजनीति आदि।

जब पंथनिरपेक्षता को भारतीय संविधान का मूल ढांचा माना गया है तो सरकार को समाज में पंथनिरपेक्षता को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास भी करने चाहिए, धर्म को राजनीति से अलग रखने का प्रयास करना चाहिए, सर्वधर्म समभाव का प्रचार प्रसार करना चाहिए एवं विभिन्न पंथों में आपसी मेलजोल बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए।

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