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LN3122: औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution)

Malay Barupal June 7, 2021

औद्योगिक क्रांति

पुनर्जागरण और मजहबी सुधार आंदोलन से यूरोप में बौद्धिक चिंतन को गति मिली और इसी के परिणाम स्वरूप 18वीं शताब्दी तक वाणिज्यवाद और औद्योगिक क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति हुई, जो ब्रिटेन से प्रारंभ होकर संपूर्ण यूरोप में फैल गई। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आर्थिक और तकनीकि क्षेत्र में जो परिर्वतन आए उसके कारण घरेलू, हस्त शिल्प और हथकरघा उद्योगों का स्थान कारखाना पद्धति ने ले लिया, परिणामस्वरुप उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि होने लगी। औद्योगिक क्रांति ने अर्थव्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था के साथ-साथ राजनैतिक व्यवस्था को भी प्रभावित किया। औद्योगिक क्रांति पूर्व नियोजित या  ब्रिटेन की अर्थ नीति के कारण नहीं थी बल्कि कुछ विशेष परिस्थितियों की देन थी। जब मांग में वृद्धि हुई तो उसकी पूर्ति करने के लिए उत्पादन में वृद्धि करने हेतु मशीनों का आविष्कार और प्रयोग तीव्र गति से हुआ। 

जब उत्पादन हुआ तो अतिरिक्त उत्पादन को खपाने के लिए विदेशी बाजारों की खोज हुई अतः विदेशी व्यापार में वृद्धि हुई। उत्पादक देशों के लोगों की आर्थिक आय में वृद्धि हुई। इस प्रकार औद्योगिक क्रांति ने मनुष्य के जीवन को भी परिवर्तित किया। 

औद्योगिक क्रांति का अर्थ 

‘औद्योगिक क्रांति’ शब्द का प्रयोग यूरोपीय विद्वानों फ्रांस के जार्जिस मिशले और जर्मनी के काइड्रिक एंजेन्म द्वारा किया गया। अंग्रेजी में इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम दार्शनिक और अर्थशास्त्री अरनॉल्डटॉयनबी द्वारा उन परिवर्तनों का वर्णन करने के लिए किया गया जो ब्रिटेन के औद्योगिक विकास में 1760 ई. से 1820 ई. के बीच हुए थे। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘लेक्चर्स ऑन इण्डस्ट्रियल रिवोल्यूशन इन इग्लैण्ड’ में औद्योगिक क्रांति को स्पष्ट करते हुए लिखा कि यह कोई आकस्मिक घटना नहीं थी।
इस का सूत्रपात शताब्दियों पूर्व हुआ जो क्रमशः अपनी गति से चलती रही और आज भी चल रही है। इतिहासकार जी. डब्लू. साउथगेट के अनुसार औद्योगिक क्रांति, औद्योगिक प्रणाली में परिवर्तन था जिसमें हस्त शिल्प के स्थान पर शक्ति संचालित यंत्रो से काम लिया जाने लगा तथा औद्योगिक संगठन में परिवर्तन हुआ। घरों में उद्योग चलाने की अपेक्षा कारखानों में काम होने लगा। इतिहासकार सी. डी. हेजन का मत है कि कुटीर उद्योग का मशीनीकरण औद्योगिक क्रांति है। डेविज के अनुसार औद्योगिक क्रांति का तात्पर्य उन परिवर्तनों से है जिन्होंने यह संभव कर दिया था कि मनुष्य उत्पादन के प्राचीन उपायों को त्याग कर विस्तृत रूप से कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन कर सके। एन्साइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइंसेजखण्ड आठ के अनुसार आर्थिक और तकनीकि विकास जो अठारहवीं शताब्दी में अधिक सशक्त और तीव्र हो गया था, जिसके फलस्वरूप आधुनिक उद्योगवाद का जन्म हुआ जिसे औद्योगिक क्रांति कहा जाता है।

औद्योगिक क्रांति का अर्थ उस आर्थिक व्यवस्था से है जो परंपरागत कम उत्पादन और विकास की निम्न अवस्था से निकलकर आधुनिक औद्योगिक क्षेत्र में प्रविष्ट होती है, जिससे अधिक उत्पादन, जीवन का रहन-सहन और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है और उत्पादन दर निरंतर बढती रहती है, जिसका मनुष्य, समाज और राज्य पर व्यापक प्रभाव पड़ा।

औद्योगिक क्रांति से ब्रिटेन में हुए परिवर्तन

  • उत्पादन संबंधी कार्य जो पहले हाथ से किए जाते थे वे अब मशीनों से किए जाने लगे। 
  • मशीनों के संचालन हेतु जलशक्ति के स्थान पर वाष्प शक्ति, खनिज तेल तथा विद्युत शक्ति का प्रयोग किया जाने लगा। 
  • इस्पात की मांग की पूर्ति के लिए इस्पात के कारखाने खोले गए। 
  • कृषि का व्यवसायीकरण किया गया। कृषि कार्य में मशीनों का प्रयोग किया जाने लगा। 
  • पूँजी का उपयोग बढ़ा और बैंकिग पद्वति का विकास हुआ। 
  • कम मानव श्रम एवं अधिकतम उत्पादन के सिद्धांत को अपनाया गया। 
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हेतु संगठित व्यापार तंत्र विकसित किया गया। 
  • यातायात के त्वरित विकास के लिए रेल इंजन और यंत्र चालित जहाजों में आमूल परिवर्तन किया गया। 

औद्योगिक क्रांति का इग्लैण्ड में आरंभ 

इंग्लैण्ड पहला देश था जहाँ सबसे पहले आधुनिक औद्योगीकरण का अनुभव किया गया। यूरोप के अन्य देशों की अपेक्षा ब्रिटेन में अनेक ऐसी परिस्थितियाँ थी जिन्होंने वहाँ औद्योगिक क्रांति आरंभ की।

  • लोहे एवं कोयले की खानो का पास-पास होना।
  • इंग्लैण्ड के पास विस्तृत औपनिवेशिक साम्राज्य ।
  • मांग के अनुरूप उत्पादन की व्यवस्था।
  • जनसंख्या वृद्धि।
  • बाजार व्यवस्था में स्थानीय प्राधिकरणो का हस्तक्षेप नहीं होना।
  • पूँजी की उपलब्धता प्रचुर मात्रा में होना व बैंकिग
  • प्रणाली स्थापित होना।
  • व्यापारी वर्ग का प्रभावी होना।
  • इंग्लैण्ड की अनुकूल भौगोलिक स्थित।
  • राजनैतिक स्थायित्व एवं सुशासन का होना।
  • वैज्ञानिक अविष्कारों को प्रोत्साहन देना। 
  • कृषि क्रांति का होना 

औद्योगिक क्रांति के कारण विभिन्न क्षेत्रों में हुए परिवर्तन 

कृषि क्षेत्र में

यह माना जाता है कि कृषि क्रांति के बिना औद्योगिक क्रांति संभव नहीं थी। सत्रहवीं शताब्दी तक कृषिक्षेत्र में सामान्यतः पुरानी पद्धति को ही काम में लिया जाता था। कृषि की तकनीकि में परिवर्तन नहीं होने का कारण यह था कि कृषि जन्य वस्तुओं की मांग राज्य की खपत से अधिक नहीं थी। लेकिन जैसे ही उद्योगों का विस्तार हुआ नगरों की आबादी बढ़ी, त्यों ही गाँव के किसानों को शहरों में रहने वालों के लिए अधिक अन्न और कारखानों के लिए अधिक कच्चा माल उत्पादन करना पड़ा। जब कृषि जन्य वस्तुओं की मांग अधिक बढ़ी तो कृषि उत्पादन उसी अनुपात में बढ़ाने के लिए कृषि उपयोगी मशीनों की आवश्यकता हुई।
दूसरा कारण अब लोग मुनाफे के लिए खेतों में पूँजी लगा रहे थे। कृषि के क्षेत्र में पूँजी के प्रयोगों ने कृषि क्रांति की। सर्वप्रथम यार्कशायर के जमींदार जेर्थोटल ने बीज बोने की मशीन (ड्रिल मशीन) बनाई, जिससे बीज बोने का कार्य अधिक व्यवस्थित तथा सुचारू रूप से होने लगा। टाउनशैड ने फसल चक का सिद्धांत दिया जिसमें फसलों को अदल बदलकर बोने से भूमि की उर्वरा शक्ति बनाई रखी जा सकती थी। अब परती छोड़ने की आवश्यकता नहीं रही तथा प्रति एकड़ फसल उत्पादन अधिक हो गया। 1770 ई. के आस पास राबर्ट बैकबैल ने कृषि के साथ-साथ पशुपालन को एक लाभदायक व्यवसाय बना दिया। इंग्लैण्डके किसान आर्थर यंग ने नई खेती का प्रसार किया, जिनमें वह छोटे खुले खेतों को मिलाकर बड़े- बड़े कृषि फार्म और बड़े फार्मो के लाभों के बारे में बताया और अपने विचारों के प्रसार के लिए ‘एनल्स ऑफ एगीकल्चर’ नामक पत्रिका शुरु की। 1793 ई. में अमेरीका निवासी विहटन ने अनाज को भूसे से अलग करने की मशीन तथा 1834 ई. में साइरस के एच, मैक कोरनिक ने फसल काटने वाली मशीन का आविष्कार किया। 

वस्त्र उद्योग में परिवर्तन

औद्योगिक क्रांति वस्त्र उद्योग से शुरु हुई थी। 18वीं शताब्दी के मध्य तक यूरोप के उद्योग में वस्त्र बनाने की प्राचीन प्रणाली वस्त्रों की मांग को पूरा करने में असमर्थ थी । इंग्लैण्ड में पहले सूती कपड़े भारत से आयात किेए जाते थे। लेकिन जब भारत के कई हिस्सों पर ईस्ट इण्डिया कंपनी का राजनीतिक नियंत्रणस्थापित हो गया तब इंग्लैण्ड ने कपड़े के साथ-साथ कपास का आयात करना भी प्रारंभ कर दिया। इस प्रकार कपास की धुनाई से वस्त्र निर्माण तक समस्त कार्य वहीं होने लगे। यूरोप में वस्त्रों की बढ़ती मांग को पुराने तरीके से पूरा नहीं किया जा सकता था। 1733 ई. में जॉन नामक बुनकर ने फ्लाइंग शटल की खोज की जिस से कपड़े बुनने में तेजी आई। 1764 ई. में जेम्स हार ग्रीब्स ने ‘स्पिनिंग जेनी’ का आविष्कार किया जिससे एक साथ सूत के आठ धागे काते जा सकते थे। 1764 ई. में रिचर्ड आर्कराइट ने स्पिनिंग जेनी में सुधार करके जल शक्ति से चलने वाली ‘वाटर फ्रेम’ नामक सूत कातने की मशीन बनाई।

लौह उद्योग में नये तकनीकी परिवर्तन

नई-नई  मशीनें बनाने के लिए लोहे की मांग बढ़ी। पुरानी पद्धति से इस मांग की पूर्ति नहीं की जा सकती थी। यह पुरानी पद्धति श्रमसाध्य एवं महँगी थी। अतः लौह अयस्क को शुद्ध करने के लिए विभिन्न विधियों की खोज की जाने लगी। 1709 ई. में अब्राहम डर्वी द्वारा धमन भट्टी का अविष्कार किया जिसमें सर्वप्रथम कोक (पत्थर का कोयला) का प्रयोग किया गया। जिसमें लौह अयस्क को पिघलाने और साफ करने का कार्य सुगम हो गया। इस आविष्कार ने धातुकर्म उद्योग में क्रांति ला दी। द्वितीय डर्बी (1711-68 ई) ने ढलवाँ लोहे से पिटवा लोहे का विकास किया, जो कम भंगुर था। हेनरी कोर्ट (1740-1823 ई.) ने आलोडन भट्टी की ऐसी विधि का आविष्कार किया जिसके द्वारा शुद्ध और अच्छा लोहा बनाना संभव हुआ। लोहेसे बनी मशीनें काफी वजनदार होती थीं और उसमें जंग भी लग जाता था। इस समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए इस्पात की खोज की गई। इस्पात बनाने के लिए लोहे को शुद्ध करके उसमें कुछ मात्रा में कार्बन, मैगनीज तथा अन्य पदार्थो को मिला कर तैयार किया जाता, जो अपेक्षाकृत हल्का मजबूत, जंगरोधी और लचकदार होता था। 1856 ई. से पूर्व इस्पात बनाने की विधि काफी महंगी थी। हेनरी बेस्सेमर ने इस्पात बनाने कि एक विधि खोजी जिसमें जल्दी और सस्ता इस्पात तैयार होने लगा। यह विधि बेसेमर प्रक्रिया नाम से प्रसिद्ध हुई। इस विधि से ढलवों लोहे से सीधा इस्पात तैयार किया जाता था। ब्रिटेन के लौह अयस्क उद्योग में इतना परिवर्तन हुआ कि 1800 ई. से 1830 ई. के दौरान अपने लौह उत्पादन को चौगुना बढा लिया। 1820 ई. में जहाँ एक टन ढलवाँ लोहा बनाने के लिए आठ टन कोयले की आवश्यकता होती थी, 1850 ई. तक आते-आते यह दो टन तक ही रह गई। 

भाप की शक्ति के आविष्कार से परिवर्तन 

जब नई मशीनों की खोज हुई तो इन्हें चलाने के लिए शक्ति के नये स्रोतों की आवश्यकता हुई। अभी तक जल और पवन शक्ति का प्रयोग किया जाता था, लेकिन इसकी सीमाएँ थी। भाप शक्ति का उपयोग सर्वप्रथम खनन उद्योगों में किया गया। खानों में पानी भरने की गंभीर समस्या थी, इसी समस्या से मुक्ति पाने के लिए 1712 ई. में टामसन न्यूकोमेन ने एक वाष्प इंजन का अविष्कार किया किंतु इस इंजन में उर्जा खपत अधिक थी तथा गहराई से पानी निकालना संभव नहीं था। जैम्सवाट ने 1769 ई. में न्यकोमेन के वाष्प इंजन के दोषों को दूर कर, कम खर्चीला तथा अधिक उपयोगी वाष्प इंजन बनाया। जिससे कारखानों में शक्ति चालित उर्जा मिलने लगी। 

नवीन तकनीक से परिवहन के साधनों में परिवर्तन

बढ़ते व्यापार एवं उद्योग के कारण परिवहन के साधनों में सुधार की आवश्यकता हुई। परिवहन को आसान और सस्ता बनाने के लिए स्कॉटलैण्ड वासी मकाडम ने सड़क निर्माण का एक नया तरीका निकाला जिसमें सड़क के निचले भाग में भारी पत्थरों की परत उसके बाद छोटे-छोटे पत्थरों की परत और उसके बाद मिट्टी बिछाई जाती थी। 

भारी सामान के परिवहन को सस्ता करने के लिए ब्रिटेन ने नहरों का निर्माण कराया। इंग्लैण्ड में पहली नहर वर्सली कैनाल, 1761 ई. में जैम्स ब्रिडली द्वारा बनाई गई। इससे माल ढोने का खर्चा आधा रह गया। 1788 ई. से 1796 ई. तक का काल ‘नहरोन्माद’ के नाम से पुकारा जाने लगा। इस अवधि में 46 परियोजनाएँ हाथ में ली गई थी। 1869 ई. में फ्रांसिसी इंजिनियर फर्दिनांद द लैस्सैप ने स्वेज नहर, जो भूमध्य सागर और लाल सागर को मिलाती है, का निर्माण कराया, जिससे यूरोप और भारत के मध्य की दूरी एक तिहाई कम हो गई। भाप से चलने वाला रेल इंजन ‘स्टीफेनम का राकेट’ 1814 ई. में बना, इसी के साथ रेल गाडियाँ, परिवहन का एक ऐसा साधन बन गई, जो वर्ष भर उपलब्ध रहती थी। 1801 ई. मेंरिचर्ड ट्रेविथिक ने एक इंजन का निर्माण किया जिसे पकिंग डेविल अर्थात् ‘फुफकारने वाला दानव’ कहते थे। 1814 ई. में रेल्वे इंजिनियर जॉर्ज स्टीफेन्स ने रेल इंजन बनाया जिसे ब्लचर कहा जाता था। यह इंजन 30 टन भार को 4 मील प्रति घंटे की रफ्तार से एक पहाड़ी पर ले जा सकता था। रेल गाड़ी द्वारा सर्वप्रथम 1825 ई. में स्टॉकटन और डार्लिंगटन शहरों के बीच 9 मील लंबा रेलमार्ग 24 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से 2 घंटे में तय किया गया। 1830 ई. में लिवरपूल और मैनचेस्टर को आपस में रेलमार्ग द्वारा जोड़ा गया। रेल के आविष्कार ने कोयला, लोहा एवं अन्य औद्योगिक उत्पादों को कम समय में और कम खर्च में लाना, ले जाना संभव बना दिया।

औद्योगिकक्रांति के परिणाम

विलडूंरा ने लिखा है कि मानव इतिहास में दो प्रसिद्ध क्रांतियाँ हुई हैं जिन्होंने मानव इतिहास को सर्वाधिक प्रभावित किया, एक तो जब मनुष्य ने पाषाण युग में आखेट छोड़कर कृषि को प्रमुख पेशा बनाया तथा दूसरी 18 वीं शताब्दी में जब मनुष्य ने कृषि को छोड़कर उद्योग को प्रमुख पेशा बनाया। 

औद्योगिक क्रांति के इन परिणामों को चार प्रमुख शीर्षकों में बाँट सकते हैं—

1. आर्थिक परिणाम 

  • (1) उत्पादन एवं वाणिज्य में असाधारण वृद्धि
  • (2) आर्थिक संतुलन
  • (3) नगरों का विकास
  • (4) कुटीर उद्योगों का विनाश।
  • (5) बैंक व मुद्रा का विकास
  • (6) राष्ट्रीय बाजारों का संरक्षण
  • (7) औद्योगिक पूँजीवाद का विकास

2. सामाजिक परिणाम 

  • (1) नैतिक मूल्यों में गिरावट
  • (2) संयुक्त परिवार प्रथा में बिखराव
  • (3) नये सामाजिक वर्ग का उदय
  • (4) मानवीय संबंधों में गिरावट
  • (5) गन्दी बस्तियों की समस्या
  • (5) नई संस्कृति का जन्म
  • (6) जनसंख्या में वृद्धि 

3. राजनैतिक परिणाम 

  • (1) राजनीति में लोक तन्त्र की मांग
  • (2) औपनिवेशिक प्रतिस्पर्धा की शुरूआत
  • (3) मध्यम वर्ग की राजनीतिक महत्वाकाँक्षाओं का उदय
  • (4) श्रमिक आन्दोलन का उदय

4. वैचारिक परिणामः-

  • (1) आर्थिक उदारवाद का स्वागत
  • (2) समाजवाद का उदय।

अभ्यासार्थ प्रश्न

अति लघुरात्मक प्रश्न (दो पंक्तियों में उत्तर दिजिए)

  • पुनर्जागरण से क्या आशय है?
  • कुस्तुंतुनिया के पतन के दो महत्वपूर्ण परिणाम बताईए।
  • मानवतावाद का जनक किसे कहा जाता है?
  • पुनर्जागरण कालीन तीन मूर्तिकारों के नाम बताईए।
  • ‘दी मोर्निंग स्टार ऑफ रिफोरमेंशन’ किसे कहा जाता है?
  • मार्टिन लूथर द्वारा लिखित तीन परिपत्रों के नाम बताइए।
  • आक्सबर्ग आंदोलन की स्वीकृति क्या है?
  • रिफोरमेशन आंदोलन में अक्टूबर 1517 ई. का ऐतिहासिक महत्व बताईए।
  • सर्वप्रथम औद्योगिक क्रांति किस देश में हुई?
  • कृषि में हुए किन्हीं दो आविष्कारों को लिखिए।
  • फर्दिनांद द लैस्सैप कौन था?

लघुत्तरात्मक प्रश्न (आठ पंक्तियों में उत्तर दीजिए)

  • पुनर्जागरण से क्या अभिप्राय है?
  • पुनर्जागरण के पाँच कारण लिखिए।
  • मानवतावाद क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  • पुनर्जागरण का केंद्र इटली ही क्यों बना?
  • रिफोरमेशन के तत्कालीन कारण क्या थे?
  • प्रति सुधार आंदोलन क्या था स्पष्ट कीजिए?
  • कॉल्विन का संक्षिप परिचय दीजिए।
  • धार्मिक न्यायालय पर टिप्पणी कीजिए।
  • यूरोप में औद्योगिक क्रांति के पाँच कारक लिखिए।
  • औद्योगिक क्रांति के समय वस्त्र उद्योग में हुए आविष्कारों का उल्लेख कीजिए।
  • औद्योगिक क्रांति के समय लौह उद्योग में आविष्कारों से क्या परिवर्तन हुआ? 

निबंधात्मक प्रश्न (अधिकतम पाँच पृष्ठों में उत्तर दीजिए)

  • पुनर्जागरण के कारण और परिणाम बताईए।
  • रिफोरमेशन आंदोलन में मार्टिन लूथर की भूमिका का वर्णन कीजिए।
  • रिफोरमेशन आंदोलन ने यूरोप को किस प्रकार प्रभावित किया?
  • औद्योगिक क्रांति के कारण विभिन्न क्षेत्रों में हुए परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
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