यूरोप में पुनर्जागरण का प्रभाव
पुनर्जागरण काल में पुराने से सामंजस्य कर नवीन के निर्माण की शुरूआत हुई, जिसने साहित्य, कला एवं विज्ञान ही नहीं मानव जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया। पुनर्जागरण का प्रभाव संपूर्ण यूरोप में एक जैसा नहीं था। इसकी गति व व्यापकता में क्षेत्रगत स्थिति के अनुरुप अंतर रहा। इटली की तुलना में यूरोप के उत्तरी देशों में चित्रकारी, मूर्तिकला और स्थापत्य ने कम महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके विपरीत उत्तरी यूरोपीय देशों में मानवतावादी दर्शन और साहित्य ने अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यद्यपि उत्तरी देशों का मानवतावाद इटली से ही लिया गया था, लेकिन उसका स्वरूप भिन्न था। जहाँ इतालवी मानवतावाद ईसाई आदशों के विरूद्ध लौकिकता के खुले विद्रोह का प्रतीक था, वहीं उत्तरी देशों के मानवतावाद ने ईसाईयत को मानवीय बनाने का प्रयास किया।
यूरोप में पुनर्जागरण के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित थे—
साहित्य के क्षेत्र में
पुनर्जागरण काल से पहले यूरोप में साहित्य का सृजन केवल लैटिन भाषा एवं यूनानी भाषा में होता था। देशी व क्षेत्रीय भाषाएँ असभ्य मानी जाती थी। किन्तु पुनर्जागरण काल में साहित्य का सृजन, अध्ययन-अध्यापन, फ्रेंच, स्पेनिश, पुर्तगाली, जर्मन, अंग्रेजी, डच, स्विडिस आदि क्षेत्रीय भाषाओं का विकास हुआ। मध्यकालीन साहित्य की मुख्य विषय वस्तु चर्च था। पुनर्जागरण काल साहित्य में मजहबी विषयों के स्थान पर मनुष्य के जीवन और उसके कार्यकलाप को महत्व दिया गया। अब साहित्य आलोचना प्रधान, मानवता प्रधान, और व्यक्तिवादी हो गया। इटली के फ्लोरेंस निवासी दांते (1265-1321) को पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा जाता है। दांते की विश्वविख्यात रचना ‘डिवाईन कामेडी’ है। जिसमें ईसाई कहानियों एवं मजहबी शास्त्रों की चर्चा है। दांते की दूसरी रचना ‘डि मोनार्किया’ है जो राजनैतिक पुस्तक है, जिसमें वह पवित्र रोमन सामाज्य के नेतृत्व में इटली के एकीकरण की बात करता है। दांते की एक अन्य रचना ‘बितानोओ’ है जो प्रेम गीत संग्रह है। फ्रोसंस्को पैट्रार्क (1321-1374 ई.) ने स्थानीय भाषा टक्सन में प्रेम गीत लिखे हैं। पैट्रार्क मानवतावादी के रूप में पुनर्जागरण का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रथम व्यक्ति था, इसलिए उसे ‘मानवतावाद का जनक’ कहा जाता है। पैट्रार्क के शिष्य बोकेसियो की सबसे श्रेष्ठ रचना ‘डेकोमेरोन’ है इसमें एक सौ कहानियों का संग्रह है। दूसरी रचना ‘जीनियोलोजी ऑफ गोड्स’ है। फ्रांस में पुनर्जागरण साहित्य रचना रेबेलेस ओर मान्टेन की है। रेबेलेस की रचना ‘पांतागुवेल’ और ‘गारगेंतुआ’ वैचारिक और साहित्यक धरातल पर एक ताजी हवा की तरह सिद्ध हुई, जिसमें सांस लेकर फ्रांस को नई स्फूर्ति मिली इसीलिए उसकी पहली पुस्तक को ‘नया सन्देश’ कहा जाता है। अंग्रेजी साहित्य के पुनर्जागरण कालीन कवि जाफरे चौसर (1340-1400 ई.) को अंग्रेजी काव्य का पिता कहा जाता है। उसकी कृति ‘कैन्टरबरी टैल्स’ है जिसमें उसने पहली बार सैक्सन बोली का कलात्मक प्रयोग किया। इसी से विकसित होकर राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी का उदय हुआ। चौसर की रचनाओं में सांसारिक चीजों, मनुष्य की कमजोरियों और उसके स्वभाव का वर्णन है।
चौसर के बाद सर टामस मूर (1478–1535) ने अपनी कृति ‘यूटोपिया’ में एक आदर्शवादी समाज की कल्पना की है। इसमें अपने समय के जन-जीवन में व्याप्त सामाजिक बुराईयों और आर्थिक दोषों का निरूपण किया गया है। पुनर्जागरण की ब्रिटेन को सबसे बड़ी देन विलियम शेक्सपियर (1564-1616) है जिसको एक महान कवि एवं नाटककार माना जाता है। उसके नाटक उस द्वंद्व को प्रस्तुत करते हैं जो सामंती और मध्यमवर्गी समाज के मध्य पैदा हो गया था। इसके प्रमुख नाटकों में ‘मर्चेन्ट ऑफ वेनिस’, ‘रोमियो जूलियट’, ‘हेमलेट’, ‘मेकबेथ’ आदि प्रमुख है। अन्य अंग्रेजी साहित्यकार एडमंड स्पेंसर का ‘फेयरी क्वीन’ और क्रिस्टोफर मार्लो का ‘तैमूरलंग ग्रेट’, ‘एड वर्ड’, ‘द ज्यु ऑफ माल्टा’ और ‘डा. फॉस्टस’ जैसी कृतियों में राष्ट्रवाद, व्यापार के विस्तार और भौतिकवाद की छवि दिखाई दी। हालैण्ड के इब्रैस्मस की कृति ‘मूखर्ता की प्रशंसा’ (इन द प्रेज ऑफ फॉली) तथा स्पेन के सरवेन्टीज ने डान क्विग्जोट की रचना की जिसमें उस युग के सामन्ती जीवन पर व्यंग्य है। राजनीतिक चिन्तन के क्षेत्र में फ्रांस के मार्सिग्लियों की कृति ‘डिफन्डर ऑफ पीस’ में पोप के राजनीतिक हस्तक्षेप को गलत बताया गया। मैकियावेली (1469-1527) की ‘द प्रिंस’ में वर्णन हैं कि चिंतन मजहब से परे है। इसमें स्पष्ट शब्दों में राज्य के मजहब निरपेक्षीकरण की बात की गई है मैकियावेली ने राजनीति के कुछ ऐसे सिद्धांत प्रतिपादित किए, जिनके कारण उसे आधुनिक चाणक्य कहा जाता है।
कला पर प्रभाव
इस काल में कला के हर क्षेत्र में पुरानी परंपरा को त्याग कर एक नई और स्वतंत्र शैली का विकास हुआ। पुनर्जागरण काल के चित्रकारों ने मजहबी विषय वस्तु को नहीं छोड़ा और मुख्यतः ईसा और मरियम से संबंधित विषय-वस्तु को ही चित्रित किया, लेकिन उन चित्रों का प्रस्तुतीकरण मानवीय और लौकिक था। प्लास्टर और लकड़ी के फलक (पैनल) के स्थान पर कैनवास का इस्तेमाल शुरू हुआ, तेल चित्रों की परंपरा शुरू हुई। इस काल में लियोनार्डो द विंची एक चित्रकार और मूर्तिकार के अतिरिक्त वैज्ञानिक, गणितज्ञ, इंजिनियर, और संगीतकार व दार्शनिक भी था, जिसके चित्रों में ‘लास्ट सपर’ और ‘मोनालिसा’ अनुपम है।
लास्ट सपर में ईसा मसीह और उसके अनुयायी केवल व्यक्ति नहीं बल्कि विभिन्न जीवन मूल्यों के प्रतिनिधि लगते हैं। मोनालिसा केवल किसी सुंदर स्त्री का चित्र नहीं है, बल्कि उस साधारण सी दिखाई पड़ने वाली महिला की रहस्यमय मुस्कान का अर्थ आज भी दर्शकों के लिए रहस्यमय बना हुआ है।
‘वर्जिन ऑफ रॉक्स’ में लियोनार्डो ने वर्जिन मेरी और शिशु ईसा की सुंदरता एवं लावण्य का चित्रण किया है। माइकेल एंजेलो मूर्तिकार एवं चित्रकार था जो मनुष्य को ईश्वर की दैवी शक्ति और प्रभुता की सबसे सुन्दर अभिव्यक्ति समझता था। माइकेल एंजेलो ने पोप के वेटिकन में स्थित सिसटाइन चैपल की छत को उसने बाइबिल की, सृष्टि से प्रलय तक की कथाओं को अमर बना दिया। उसके सबसे महान चित्र ‘लास्ट जजमेंट’ को देखने से पता चलता है कि मनुष्य भय और आतंक से ग्रस्त है तथा ईश्वर के प्रेम और दया की कोई आशा नहीं है।
राफेल द्वारा निर्मित ‘मेडोना’ का दिव्य नारीत्व का चित्रांकन सजीवता और सुन्दरता के कारण संसार के अत्यन्त प्रसिद्धचित्रों में गिना जाता है। बैसेलो टिसियन ने सामन्तों और सम्राट परिवार की महिलाओं के अनेक पोट्रेंट बनाये। इसका ‘दस्ताने पहने हुए आदमी’ का चित्र प्रमुख एवं आकर्षक है। पुनर्जागरण कालीन मूर्तिकला, मजहब के बन्धन से मुक्त होकर बृहत्तर संदर्भो में जुड़ी। इस काल के प्रमुख मूर्तिकारों में लोरेंजो गिबेर्ती, दोनातेल्लो और माइकेल एंजलो प्रमुख है। गिबेर्ती ने फ्लोरेंस के गिरजाघर के सुन्दर दरवाजों को निर्मित किया। इन पर ओल्ड टेस्टामेंट में वर्णित दृश्यों का अंकन है। माइकेल एंजेलो ने इनकी प्रशंसा करते हुए कहा कि ये स्वर्ग के द्वार पर रखे जाने योग्य हैं। दोनातेल्लो की 15 फीट उँची ‘पेता’ की मूर्ति प्रसिद्ध हुई। पुनर्जागरण कालीन स्थापत्य कला में प्राचीन यूनान और रोम शैली का समन्वय स्थापित हुआ। इस स्थापत्य को यूनान से स्तम्भ और क्षैतिज रेखाएँ, रोम से गुम्बद मेहराब और विशालता प्राप्त हुई। इसका उदाहरण फ्लॉरेंस का कैथेड्रल और संत पीटर का गिरजाघर है।
विज्ञान के क्षेत्र में प्रभाव
पुनर्जागरण का विज्ञान पर भी प्रभाव पड़ा। पुनर्जागरण ने मनुष्य को मजहबी नियंत्रण से मुक्त करके स्वतंत्र रूप से विचार करने का अवसर दिया। नवीन दृष्टिकोण ने मानव मन में प्रकृति के रहस्य को जानने की जिज्ञासा को जन्म दिया। फ्रांसिस बेकन ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण का वर्णन करते हुए कहा “ज्ञान की प्राप्ति प्रेक्षण और प्रयोग करने से ही हो सकती है।” 16 वीं शताब्दी से तो यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति का युग आ गया। पौलेण्ड के वैज्ञानिक कोपरनिकस ने बताया कि पृथ्वी एक उपग्रह है जो सूर्य के चारो और घूमती है। इटली के वैज्ञानिक ब्रूनों ने कोपरनिकस के सिद्धान्त का अनुमोदन किया। इस प्रतिपादन को बाइबिल के विरुद्ध मानकर रोम के पादरियों ने उसे जिन्दा जला दिया। जर्मन खगोल शास्त्री जॉन कैपलर ने कोपरनिकस के सिद्धान्तों की गणितीय प्रमाणों द्वारा पुष्टि की। इंग्लैण्ड के वैज्ञानिक और गणितज्ञ आइजक न्यूटन के ‘गुरूत्वाकर्षण के सिद्धांत’ ने विश्व में हलचल पैदा कर दी। अब यह स्पष्ट हो गया कि संपूर्ण विश्व सुव्यवस्थित नियमों के अनुसार चल रहा है, न कि देव शक्ति से। फ्रांसीसी गणितज्ञ एवं दार्शनिक देकार्ते ने बीज गणित का ज्यामिती में प्रयोग करना सिखाया और इटली वासी गैलीलियो (1564-1642) ने पेण्डुलम के सिद्धांत, वायु मापन यंत्र और दूरबीन का आविष्कार किया।
मानवतावाद
पुनर्जागरण से सबसे अधिक प्रभावित मनुष्य का दृष्टिकोण हुआ। अब मनुष्य की दिलचस्पी ईश्वर में न होकर मनुष्य में हो गई। मानवतावादी चिंतकों ने मजहबी ग्रंथों के वैराग्य और आध्यात्मिकता को तिलांजली देकर सौंदर्य माधुर्य, मानव प्रेम और भौतिक सुखों को जीवन का सार स्वीकार किया।