वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion)
प्रस्तावनाः
देश के बैंकों पर आर्थिक लाभ के लिए व्यावसायिक दृष्टि रखने के अतिरिक्त बहुत बड़ा सामाजिक दायित्व है । आर्थिक विकास के बिना कोई भी समाज वास्तविक प्रगति नहीं कर सकता । बैंकों के माध्यम से चलायी जा रही विभिन्न सरकारी योजनाएं इसी दायित्व के निर्वाह की दिशा में उठाए जा रहे कदमों में शामिल हैं । देश के सभी नागरिकों को समान आर्थिक विकास एवं सामाजिक एकरूपता के लिए बिना किसी भेद – भाव , प्रतिबंध के बुनियादी बैंकिंग एवं भुगतान संबंधी सेवाएं उपलब्ध कराना जरूरी है । यदि समाज का एक बड़ा वर्ग उपेक्षित रहता है और जो लोग वित्तीय रुप से वंचित हैं , उन्हें उसके दायरे में नहीं लाया जाता है तो स्पष्टतः देश की आर्थिक विकास तथा उच्च संवृद्धि दर तक नहीं पहुंचा जा सकता । वित्तीय समावेशन भारतीय बैंकिंग के समक्ष एक बड़ी चुनौती है । वह 130 करोड़ लोगों से अधिक के देश में 50 प्रतिशत लोगों तक बैंकिंग व्यवसाय ले जाने से संबंधित है ।
वित्तीय समावेशन क्या है :
वित्तीय समावेशन से आशय है वहन – योग्य लागत पर उपेक्षितों और अल्प आय समूह के लोगों को बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराना । ऋण की दृष्टि से इसका आशय है, ऐसे परिवारों को ऋण के दायरे में लाना , जो ऋण लेना चाहते हैं किंतु उससे वंचित हैं । साथ ही , वित्तीय समावेशन में अन्य वित्तीय सेवाएँ , जैसे- औपचारिक वित्तीय प्रणाली के माध्यम से बचत , बीमा , भुगतान और धन – प्रेषण की सुविधाएँ भी शामिल है । वित्तीय समावेशन में ऐसे लोगों को बैंकिंग सेवाओं के दायरे में लाना जो अभी तक बैंकिंग सेवाओं से वंचित हैं । इस के अंतर्गत कम आय वाले और समाज के कमजोर वर्गों को बैंकिंग सेवाओं से संबद्ध करना , उन्हें कम लागत पर ये सेवाएं उपलब्ध कराना , सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव के बैंकिंग सेवाएं प्रदान करना और सभी वयस्क व्यक्तियों को बैंक में खाता खोलकर बैंक से जोड़ना शामिल है ।
वित्तीय समावेशन क्यों :
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में सिर्फ 59 प्रतिशत परिवारों के पास बैंकिंग सुविधा उपलब्ध है । शहरों में 68 प्रतिशत और गांंव में 56 प्रतिशत परिवारों की पहुंच ही बैंकिंग सुविधा तक है , अर्थात आजादी के सात दशक बीतने पर भी देश की करीब आठ करोड़ शहरी और ढाई करोड़ ग्रामीण आबादी बैंकिंग सुविधाओं से वंचित है । आबादी का एक बड़ा हिस्सा बैंकिंग सुविधाओं से अछूता होने के कारण , गरीबी के कुचक्र को तोड़ नहीं पाते हैं और साहूकारों के चंगुल में फंस जाते हैं । गरीबों को वित्तीय रुप से अलग रख कर कोई देश स्थायी प्रगति नहीं कर सकता । गरीब लोग सिर्फ गरीब ही नहीं मूल्य के प्रति जागरुक ग्राहक भी हैं जिनका बाजार अर्थव्यवस्था में व्यापक योगदान है । यदि इस योगदान को किफायती वितरण के जरिए व्यवसायिक रुप दिया जाए तो वित्तीय समावेशन लाभकारी व्यवसाय बन सकता है ।
वित्तीय समावेशन का उद्देश्य :
वित्तीय समावेशन के मुख्य उद्देश्य ग्रामीणों को बैंकिंग सेवाएं प्रदान कर उन्हें देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ना , शहरी एवं अर्द्धशहरी क्षेत्र के गरीबों को बैंकिंग सेवाएं प्रदान करना , रोजगारपरक एवं गरीबी उन्मूलन योजनाओं को बैंक के माध्यम से गरीबों तक पहुंचाना , गरीबों को महाजनों एवं साहूकारों के चंगुल से बचाना तथा बैंकिंग सुविधाओं से वंचित व्यक्तियों को वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराना है ।
वित्तीय समावेशन का महत्वः
वित्तीय समावेशन के अनेक लाभ हैं , जिनमें से कुछ निम्न प्रकार सेे है:-
1 ) त्वरित आर्थिक संवृद्धि : वित्तीय संस्थाओं तक पहुँच कायम हो जाने के बाद ग्राहकों, विनियामकों और अर्थव्यवस्था, सभी को लाभ मिलता है । बैंक में खाता खुल जाने से ग्राहक को कई प्रकार के लाभ मिलने लगते हैं , जैसे: सुरक्षित और लाभप्रद तरीके से बचत करना , अल्प लागत पर धन का प्रेषण और उचित ब्याज पर ऋण की सुविधा । विनियामक को बैंकिंग माध्यम से होने वाले प्रत्येक लेनदेन की जानकारी मिलती है और वह पूरी व्यवस्था पर निगरानी रख सकता है । अर्थव्यवस्था में होने वाली समस्त आर्थिक गतिविधि के विषय में पारदर्शितापूर्ण जानकारी मिल जाती है , जिससे विभिन्न योजनाओं आदि के बारे में सुविचारित निर्णय किए जा सकते हैं । कुल मिलाकर ये सभी कारण समस्त अर्थव्यवस्था की त्वरित संवृद्धि में योगदान करते हैं ।
2 ) गरीबी उन्मूलन – गरीबी दूर करने में वित्तीय समावेशन बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है । जब आय के समान वितरण और सामाजिक न्याय की बात होती है और जब गरीबी हटाने के सवाल पर चर्चा होती है , तब अनिवार्य रुप से वित्तीय समावेशन का प्रश्न सामने आ जाता है । बिना वित्तीय समावेशन के सरकार के सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों को भी पूरा नहीं किया जा सकता ।
उक्त दो बड़े फायदों के साथ – साथ , वित्तीय समावेशन से और भी कुछ लाभ मिलेंगे , जैसे- बैंकिंग गतिविधि के लिए और अधिक माँग , खुदरा व्यापार के क्षेत्र में माँग, क्रेडिट कार्ड आदि का प्रचलन बढ़ने के कारण ग्राहकों की व्यय करने की क्षमता / क्रय – शक्ति में वृद्धि और फलस्वरुप समस्त आर्थिक गतिविधि ( विनिर्माण , विपणन , उपभोग आदि ) में वृद्धि , ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर – बिजली , सड़कों , दूरसंचार , गोदामों के निर्माण , कृषि उत्पाद आदि में वृद्धि , वृहतर पैमाने पर शिक्षा और प्रशिक्षण सुविधाओं की उपलब्धता, साथ ही इससे चिकित्सा सुविधाओं , मनोरजन , आवास आदि की माँग व आपूर्ति में वृद्धि होगी ।
उपसंहार:
वित्तीय समावेशन के द्वारा गरीब एवं वंचित लोगों को उत्पादक कार्यों में संलग्न होने एवं जीविका चलाने के लिए पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए अन्यथा देश के विकास का सपना देखना बेमानी होगा । इससे संबद्ध सभी पक्षों को अपनी सोच में बदलाव लाकर समर्पण की भावना एवं प्रतिबद्धता से कार्य करना होगा , तभी हम अपनी इस मुहिम में सफल हो पाएंगे और बैंक भी इस चुनौती का सामना सफलतापूर्वक कर पाएंगे।
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