उपभोक्ता संरक्षण क़ानून, 2019 (Consumer Protection Act, 2019)

Editor’s Comment: डॉ. मंजु राठी (एमबीबीएस/एमडी, एलएलबी/एलएलएम, गृह जिला— पाली) का आर्टिकल समसामयिक मामलों Current Affairs की दृष्टि से अतिमहत्त्वपूर्ण है।

कोई भी संरक्षण क़ानून का मतलब है वो किसी के संरक्षण के लिए बनाया गया है। उपभोक्ता संरक्षण क़ानून भी  उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण के लिए बनाया गया है। उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019  ने पुराने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 को प्रतिस्थापित कर दिया। इस नए बिल में  उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए उनको और भी अधिक अधिकार दिए गए हैं। तो आइए,आज हम जानते हैं उपभोक्ता संरक्षण क़ानून 2019 में, 1986 के क़ानून से अलग क्या क्या प्रावधान है।

उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2019 को  लोकसभा ने 30 जुलाई 2019 को और राज्य सभा ने 6 अगस्त 2019 को पारित किया है। यह विधेयक संसद में उपभोक्ता मामलों,खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री  श्री राम बिलास पासवान  द्वारा पेश किया गया था।

इस बिल को राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की मंज़ूरी 9 अगस्त 2019 को मिली और 9 अगस्त 2019 को ही भारत के राजपत्र में शामिल किया गया।

“अभी अभी 20 जुलाई 2020 को इस क़ानून को  पूरे देश में लागू किया गया है।”

(1) अब हम जानते हैं कि डॉक्टर या मेडिकल प्रोफ़ेशनल इस क़ानून के तहत आते हैं या नहीं आते हैं।

डॉक्टर या मेडिकल प्रोफ़ेशनल v/s उपभोक्ता संरक्षण क़ानून 2019

उपभोक्ता संरक्षण क़ानून 1986 के अंतर्गत “हेल्थकेयर “ यह शब्द नहीं था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक केस के जजमेंट के बाद हेल्थकेयर सर्विसेज़ उपभोक्ता संरक्षण के कानून के तहत आने लग गई।और वो केस था इंडियन मेडिकल असोसिएशन बनाम VP  शांथा जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सर्विसेस के तहत हेल्थ केयर सर्विसेज़ याने कि डॉक्टर को भी उपभोक्ता संरक्षण क़ानून के तहत लाभ दिया था और उसके बाद ऐसे अनेक केसेस डॉक्टर के विरुद्ध इस क़ानून के तहत कोर्ट में फ़ाइल होने लगे और डॉक्टर भी इस क़ानून के अंतर्गत आने के बाद बहूत ही एहतियात बरतते हुए अपनी प्रैक्टिस करने लगा।

किन्तु सवाल यह है कि उपभोक्ता संरक्षण क़ानून 2019, हेल्थकेयर सर्विसेस यानी की मेडिकल प्रोफ़ेशनल लोगों को रियायत देता है की नहीं है?  जैसे की मैं बता दूँ जब यह बिल लोकसभा में पास हुआ था तब उसमें सर्विसेस के अंतर्गत टेलीकॉम के बाद “हेल्थकेयर”  यह शब्द  उसमें था। लेकिन जब यह विधेयक राज्यसभा में गया तब उसमें हेल्थकेयर सर्विसेज़ यह शब्द नहीं था।इसके लिए मंत्री महोदय श्री राम विलास पासवान जी ने कहा था की अगर डॉक्टर्स इस बिल में आते हैं तो वो छोटी छोटी प्रॉब्लम्स के लिए दवाई लिखने से पहले  अपना डिफेंसिव हथियार अपनाएंगे और छोटी छोटी बीमारियों के लिए भी टेस्ट लिखेंगे जिसमें पैसा भी ख़र्च होगा और वक़्त भी लगेगा जिससे मरीज़ को वक़्त पे इलाज संभव नहीं होगा इसके लिए उन्होंने सर दर्द का भी एक उदाहरण प्रस्तुत किया था और उन्होंने कहा था की पार्लियामेंट के बहूत सारे मेंबर्स का भी मानना यही है कि डॉक्टर्स इस बिल के अंदर  ना लाए जाएं।और इसलिए हेल्थ केयर शब्द इस बिल के अंदर से हटा दिया गया है।

अब सवाल ये उठता है कि वाक़ई डॉक्टर्स इस बिल में नहीं आते हैं? ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा की कोर्ट इस मामले में अपना रुख़ कैसे अपनाती है।

वैसे तो पार्लियामेंट की मंशा यही है कि डॉक्टर्स इस बिल के अंदर नहीं आए और उन्होंने ऐसा ही किया है और संविधान की तरफ़ से देखा जाए तो पार्लियामेंट जो बिल पास करता है उसकी मंशा का ख़याल रखते हुए ही कोर्ट को संवैधानिक रूप से कोई भी बिल  का इंटरप्रिटेशन करना होता है और ये इंटरप्रिटेशन अगर संवैधानिक रूप से होता है और पार्लियामेंट की मंशा के अनुरूप होता है तो हेल्थ केयर सर्विसेस उपभोक्ता संरक्षण क़ानून 2019 के तहत नहीं आती है और हम आशा करते हैं की डॉक्टर्स इसके अंदर नहीं आएँ तभी डॉक्टर और पेशेंट के जो रिश्ते सालों से ख़राब होते आ रहे हैं वो सुधरने की उम्मीद है और डॉक्टर पेंशट का एक दूसरे पर विश्वास होना बहुत ज़रूरी है जो की पहले  क़ानून के तहत ये रिश्ते बिगड़ने लग गए थे जिसे सुधारने का एक मौक़ा मिल रहा है  उसका ज़रूर लाभ उठाना चाहिए।

(2) अब हम देखेंगे कि उपभोक्ता संरक्षण क़ानून 2019 के अंतर्गत उपभोक्ता के अधिकारों के संरक्षण के लिए ऐसे कौन कौन से प्रावधान दिए गए हैं जिससे उपभोक्ताओं को लाभ मिलेगा।

 इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य

सबसे पहले तो हम यह देखेंगे कि उपभोक्ता संरक्षण विधेयक का “मुख्य उद्देश्य” क्या है उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 का मुख्य उद्देश्य,उपभोक्ताओं की समस्याओं को समय पर हल करने के लिए प्रभावी प्रशासन और ज़रूरी प्राधिकरण की स्थापना करना और उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करना ये हैं।

उपभोक्ता किसे कहते हैं?

 इस अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ता कौन है?

 उपभोक्ता उस व्यक्ति को कहा जाता है जो वस्तुओं और सेवाओं की ख़रीद और उपयोगअपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए करता है।इसमें वो व्यक्ति नहीं आते हैं जो व्यक्ति वस्तुओं और सेवाओं को दोबारा बेचने के लिए या वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए ख़रीदता है उसे उपभोक्ता नहीं माना जाता है। यह परिभाषा ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों प्रकार के लेन देन को शामिल करती है।कोई व्यक्ति, कोई वस्तु या कोई सेवा मुफ़्त में प्राप्त करता है वो इस क़ानून के दायरे में नहीं आता है

उपभोक्ताओं के अधिकार

इस क़ानून के तहत उपभोक्ताओं को कई अधिकार दिए गए हैं जैसे कि

  1. ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मार्केटिंग के ख़िलाफ़ सुरक्षा प्रदान करना जो जीवन और संपत्ति के लिए हानिकारक है।
  2. वस्तुओ या सेवाओं की गुणवत्ता,मात्रा, शुद्धता,मानक और मुल्य की जानकारी प्राप्त करना।
  3. प्रतिस्पर्धा मूल्य पर वस्तु और सेवा उपलब्ध करवाने का आश्वासन प्राप्त करना।
  4. अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवज़े की माँग करना।

इस तरह के प्रावधानों से उपभोक्ताओं को इस विधेयक के तहत संरक्षण दिया गया है।

अब हम देखेंगे उपभोक्ता संरक्षण क़ानून 1986 और उपभोक्ता संरक्षण क़ानून 2019 में क्या क्या भिन्नता है।

उपभोक्ता संरक्षण क़ानून 2019 की प्रमुख विशेषताएँ (Key features of consumer protection act 2019)

1. केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना (Central Consumer Protection Authority— CCPA)

केंद्र सरकार उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने,उन्हें सुरक्षित करने और उन्हें लागू करने के लिए केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA )का गठन करेंगी।यह अथॉरिटी उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन,अनुचित व्यापार और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों को देखेगी। महानिदेशक की अध्यक्षता में CCPA की एक शाखा -अन्वेषण शाखा (इन्वेस्टिगेशन विंग )का गठन होगा जो ऐसे उल्लंघनों की जाँच या इन्वेस्टिगेशन करेगी।

CCPA के मुख्य कार्य क्या होंगे?

  1. उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन की जाँच पड़ताल करना और क़ानूनी कार्रवाई शुरू करना 2.जोखिमपूर्ण वस्तुओं को वापस करना या सेवाओं को वापस लेना इस तरह के आदेश जारी करना।
  2. चुकाई गई क़ीमत की भरपाई करवाना और अनुचित व्यापार को बंद करना।
  3. संबंधित ट्रेडर, मैन्यूफ़ैक्चरर ,एडवर्टाइज़र पब्लिशर इत्यादि के झूठे या भ्रामक विज्ञापन को बंद करने या उसे सुधारने के आदेश जारी करना।
  4. गलती पर जुर्माना लगाना
  5. ख़तरनाक और असुरक्षित वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रति उपभोक्ताओं को सुरक्षा और चेतावनी नोटिस जारी करवाना।

उपभोक्ता विवाद निवारण कमिशन का गठन (Consumer Disputes Redressal Commission— CDRC)

इस नए विधेयक के अंतर्गत जिला,राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का गठन किया जाएगा।

एक उपभोक्ता किन किन शिकायतों पर इन आयोगों की शरण ले सकता है?

  1. अनुचित और प्रतिबंधित तरिके का व्यापार
  2. दोषपूर्ण वस्तु या सेवाएँ
  3. अधिक क़ीमत वसूलना या ग़लत तरीक़े से क़ीमत वसूलना
  4. ऐसी वस्तु या वस्तुओं या सेवाओं को बिक्री के लिए पेश करना जो जीवन और सुरक्षा के लिए जोखिमपूर्ण हो सकती है।

उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन का क्षेत्राधिकार (Pecuniary Jurisdiction of CDRC)

1) जिला CDRC (District CDRC): जिला CDRC उन शिकायतों के मामलों की सुनवाई करेगा जिनमें सेवाओं या वस्तुओं की क़ीमत 1, करोड़ रुपये से अधिक न हो।

2)राज्य CDRC( State CDRC): राज्य CDRC उन शिकायतों के मामले में सुनवाई करेगा जिनमें सेवाओं और वस्तुओं की क़ीमत 1, करोड़ रुपये से अधिक हो लेकिन 10, करोड़ रुपये से कम हो।

3) राष्ट्रीय CDRC (Central CDRC): राष्ट्रीय CDRC 10 करोड़ रुपये से अधिक की क़ीमत की सेवाओं और वस्तुओं के संबंधित शिकायतों की सुनवाई करेगा।

उपभोक्ताओं का शिकायत दर्ज कराने का क्षेत्राधिकार

उपभोक्ता संरक्षण क़ानून 2019 लागू होने के बाद उपभोक्ता किसी भी उपभोक्ता न्यायालय में अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है।यह प्रावधान पुराने क़ानून में नहीं था उसमें जहाँ पर  आपने सामान ख़रीदा है या सेवाएँ ली है वहीं पर ही आप केस दर्ज करा सकते थे या शिकायत दर्ज करा सकते थे।

उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो जैसे आपने राजस्थान से कोई माल ख़रीदा और आप महाराष्ट्र के रहने वाले हो और वहाँ जाके आपको पता चलता है कि आपने ख़रीदा हुआ माल ख़राब है तो आप उस माल की भरपाई के लिए महाराष्ट्र में अपनी जगह पर आप शिकायत दर्ज करा सकते हैं। यह प्रावधान उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है और उन्हें इस प्रावधान की वजह से असुविधाओं से मुक्ति मिलेगी।

भ्रामक विज्ञापनों के लिए जुर्माना

झूठे और भ्रामक विज्ञापनों के लिए मैन्यूफैक्चरर या एंडोर्सर पर 10 लाख रुपए तक का दंड लगाया जा सकता है और अधिकतम दो वर्षों का कारावास भी हो सकता है। इसके बाद अपराध करने पर यह जुर्माना बढ़कर 50 लाख रुपए तक हो सकता है और सजा पाँच वर्षों तक बढ़ाई जा सकती है।

नए क़ानून में उपभोक्ताओं को भ्रामक विज्ञापन जारी करने पर भी कार्रवाई की जाएगी।CCPA झूठे या भ्रामक विज्ञापन के लिए मैन्यूफैक्चरर या एंडोसर पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगा सकती है अगर अपराध दोबारा किया जाता है तो इस स्थिति में जुर्माना बढ़कर 50 लाख तक भी हो सकता है ! मैन्यूफैक्चरर  या एंडोसर को दो वर्ष तक की क़ैद की सजा या हर बार अपराध करने पर पाँच वर्ष तक बढ़ भी सकती है। CCPA भ्रामक विज्ञापनों के तहत उस विशेष उत्पाद या सेवा को एक वर्ष तक प्रतिबंधित कर सकती है और अपराध दुबारा घटित होने पर  यह अवधि तीन वर्ष तक बढ़ायी भी जा सकती है।

सेलिब्रिटी की जवाबदेही

नए नियमों के तहत सेलिब्रिटी की जवाबदेही भी तय कर दी गई है। पहले भ्रामक विज्ञापनों के लिए सेलिब्रिटी की जवाब देही तय नहीं थी लेकिन अब भ्रामक विज्ञापन करने पर सेलिब्रिटीज़ को भी सजा और जुर्माने का प्रावधान लागू किया गया है।ऐसे में सेलिब्रिटीज़ को बहूत सोच समझकर ही विज्ञापनों का चयन करना होगा।

उत्पाद की ज़िम्मेदारी (product liability)

उत्पाद की ज़िम्मेदारी का अर्थ है उत्पाद के मैन्यूफैक्चरर,सर्विस प्रोवाइडर या विक्रेता की ज़िम्मेदारी यह है कि वह किसी ख़राब वस्तु या सेवा के कारण होने वाले नुक़सान या क्षति के लिए उपभोक्ताओं को मुआवज़ा दें। यहाँ पर पहले वाले क़ानून में यह था कि उपभोक्ताओं को सतर्क रहना होता था किसी भी वस्तु को ख़रीदने के लिए।(Buyer be aware) अब इस क़ानून के तहत सेलर को सतर्क रहना होगा  (Seller be aware).

मुआवज़े का दावा करने के लिए उपभोक्ताओं को विधेयक में उल्लिखित ख़राबी या दोष से जुड़ी कम से कम एक शर्त को साबित करना होगा।

ई-कॉमर्स व्यवसाय

पुराने उपभोक्ता संरक्षण नियमों में ई-कॉमर्स कंपनियों को शामिल नहीं किया गया था लेकिन अब इन्हें भी शामिल किया गया है।अब ऑनलाइन शॉपिंग करने वालों को ज़्यादा परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी और ई -कॉमर्स कंपनियों को भी उपभोक्ता संरक्षण क़ानून का उचित पालन करना होगा, वरना उपभोक्ता उनके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कर सकता है।

उपभोक्ता मध्यस्थता सेल का प्रावधान (Consumer mediation cell)

नए क़ानून के तहत कन्जयूमर मेडिएशन सेल का गठन किया जाएगा।ये सभी जगह पर जिला,राज्य और राष्ट्रीय कमीशन के साथ संलग्न होगी। इसमें दोनों पक्ष आपसी सहमति से  मेडिएशन सेल में जा सकेंगे और आउट ऑफ़ कोर्ट सेटलमेंट कर सकेंगे।

सख़्त हुआ क़ानून और सशक्त हुआ उपभोक्ता

उपभोक्ता संरक्षण क़ानून 2019 से उपभोक्ताओं को लाभ—

  1. वर्तमान में शिकायतों के निवारण के लिये उपभोक्‍ताओं के पास एक ही विकल्‍प है, जिसमें अधिक समय लगता है। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के माध्यम से विधेयक में त्वरित न्याय की व्‍यवस्‍था की गई है।
  2. भ्रामक विज्ञापनों के कारण उपभोक्ता में भ्रम की स्थिति बनी रहती है तथा उत्पादों में मिलावट के कारण उनके स्वास्थ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भ्रामक विज्ञापन और मिलावट के लिये कठोर सज़ा का प्रावधान है जिससे इस तरह के मामलों में कमी आए।
  3. दोषपूर्ण उत्पादों या सेवाओं को रोकने के लिये निर्माताओं और सेवा प्रदाताओं की ज़िम्मेदारी का प्रावधान होने में उपभोक्ताओं को छान-बीन करने में अधिक समय खर्च करने की ज़रुरत नहीं होगी।
  4. उपभोक्ता आयोग से संपर्क करने में आसानी और प्रक्रिया का सरलीकरण। अब उपभोक्ता किसी भी जगह से शिकायत कर सकेगा।
  5. वर्तमान उपभोक्ता बाज़ार के मुद्दों- ई कॉमर्स और सीधी बिक्री के लिये नियमों का प्रावधान है।नए कानून में ऑनलाइन और टेलीशॉपिंग कंपनियों को भी शामिल किया गया है।
  6. उपभोक्ता संरक्षण कानून-2019 में जो प्रावधान है.. उसके मुताबिक, PIL या जनहित याचिका अब कंज्यूमर फोरम में दायर की जा सकेगी.. पहले के कानून में ऐसा नहीं था।
  7. खाने-पीने की चीजों में मिलावट करने वाली कंपनी पर जुर्माने और जेल का प्रावधान है।
  8. उपभोक्ता मध्यस्थता सेल का गठन किया जाएगा.. दोनों पक्ष आपसी सहमति से मध्यस्थता का विकल्प चुन सकेंगे।
  9. जिला कंज्यूमर फोरम में एक करोड़ रुपये तक के केस और राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में एक करोड़ से 10 करोड़ तक के केस का निपटारा होगा.. राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में.. 10 करोड़ रुपये से ऊपर के केस की सुनवाई होगी।
  10. सिनेमा हॉल में खाने-पीने की वस्तुओं पर ज्यादा पैसे लेने की शिकायत पर भी कार्रवाई का प्रावधान है।
  11. नए कानून के तहत कैरी बैग के पैसे वसूलना भी कानूनन गलत होगा।

इस तरह के अनेक प्रकार के नए प्रावधानों की वजह से उपभोक्ता संरक्षण क़ानून, 2019 सख़्त हो गया है और उसी वजह से उपभोक्ता सशक्त हो गया है।

धन्यवाद!

डॉ. मंजु राठी (एम बी बी एस. /एम.डी., एल एल बी./एल एल एम)

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