व्यक्तित्व (Personality)
Admin Comment: श्री मुकेश जांगू (हनुमानगढ़) का आर्टिकल जो आरएएस (RAS), सिविल सेवा तथा राजस्थान एवं भारत की विभिन्न परीक्षाओं के लिए अत्यंत उपयोगी है।
व्यक्तित्व लैटिन शब्द परसोना से बना है जिसका अर्थ नकाब से होता है और जिसे नायक नाटक करते समय पहनते हैं।मनोवैज्ञानिक शब्दों में व्यक्तित्व से तात्पर्य उन विशिष्ट तरीकों से है जिनके द्वारा व्यक्तियों और स्थितियों के प्रति अनुक्रिया की जाती है।व्यक्तित्व से तात्पर्य उन अनन्य एंव सापेक्ष रूप से स्थिर गुणों से है जो एक समयावधि में विभिन्न स्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार को विशिष्टता प्रदान करते हैं। आलपोर्ट (1937) के अनुसार ” व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मनो शारीरिक तंत्रों का गतिशील या गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण में उसके समायोजन को निर्धारित करते हैं । “आइजेन्क (1952) के अनुसार, ” व्यक्तित्व, व्यक्ति के चरित्र, चित्र प्रकृति , ज्ञान शक्ति तथा शरीर गठन का करीब करीब एक स्थाई एवं टिकाऊ संगठन है जो वातावरण में उसके अपूर्ण समायोजन का निर्धारण करता है।”आइजेन्क ने आलपोर्ट के समान व्यक्तित्व को परिभाषित करने में व्यक्तित्व के भीतरी गुणों तथा बाहरी गुण यानि व्यवहार को सम्मिलित किया है परन्तु भीतरी गुणों पर अधिक बल डाला है।
व्यक्तित्व को निम्न विशेषताओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है—
इसके अंतर्गत शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक दोनों ही घटक होते हैं।2. किसी व्यक्ति विशेष में व्यवहार के रूप में इसकी अभिव्यक्ति पर्याप्त रूप से अनन्य होती है ।3. इसकी प्रमुख विशेषताएं साधारणतया समय के साथ परिवर्तित नहीं होती है ।4. यह गत्यात्मक होता है , इसकी कुछ विशेषताएं आंतरिक अथवा बाह्य स्थितिपरक मांगों के कारण परिवर्तित हो सकती है । इस प्रकार व्यक्तित्व स्थितियों के प्रति अनुकूल होता है ।
व्यक्तित्व के निर्धारक
व्यक्तित्व के निर्धारण में जिन तत्वों का हाथ रहता है, उन्हें व्यक्तित्व के अंग कहा जा सकता है यही अंग मिलकर व्यक्तित्व को पूर्ण बनाने में सहयोग देते हैं अन्यथा व्यक्तित्व का विकास संभव नहीं। ऐसे कारकों को दो भागों में बांटा गया है जैविक कारक व पर्यावरणीय कारक।
1. जैविक कारक:- व्यक्ति के अनुवांशिकता एवं जैविक प्रक्रियाओं से संबंधित (A) शारीरिक संरचना तथा शारीरिक स्वास्थ्य (B) शरीर रसायन एवं अंत स्त्रावी ग्रंथियां (C) स्नायु मंडल- जिन व्यक्तियों का स्नायु मंडल अधिक विकसित तथा जटिल होता है, उसकी बुद्धि अधिक होती है तथा उसमें परिस्थिति के साथ समायोजन की क्षमता अधिक होती है। ऐसे व्यक्तियों या बच्चों के प्रति समाज के अन्य लोगों की मनोवृति अनुकूल होती है और इन लोगों द्वारा उनकी प्रशंसा अधिकतर की जाती है। जिसका परिणाम यह होता है कि व्यक्तियों व बच्चों में सामाजिक शीलगुण जैसे उत्तरदायित्व, सत्यनिष्ठा सांवेगिक स्थिरता, आत्मविश्वास, अहम शक्ति का विकास तेजी से होता है।
2. पर्यावरणीय कारक
(a) सामाजिक कारक – माता-पिता ,परिवार के सदस्यों का आपसी समन्वय, जन्म कर्म, स्कूली प्रभाव, पास-पड़ोस ,सामाजिक स्वीकृति
(b) सांस्कृतिक कारक (c) आर्थिक कारक
व्यक्तित्व के प्रकार:
- हिप्पोक्रेट्स का वर्गीकरण- यूनानी चिकित्सक ने शारीरिक द्रव्य के आधार पर वर्गीकरण किया। (1) पीला पित्त – क्रोधी (2) काला पित्त – निराशावादी (3) रक्त – उत्साही (4) कफ – विरक्त
- कैचमर का शरीर रचना पर आधारित वर्गीकरण: (i). शक्तिहीन (एस्थेनिक)(ii). खिलाड़ी (एथलेटिक)(iii). नाटा (पिकनिक)।
- कपिल मुनि का स्वभाव पर आधारित वर्गीकरण : (i). सत्व प्रधान व्यक्ति(ii). राजस प्रधान व्यक्ति(iii). तमस प्रधान व्यक्ति।
- थार्नडाइक का चिंतन पर आधारित वर्गीकरण :(i). सूक्ष्म विचारक(ii). प्रत्यक्ष विचारक(iii). स्थूल विचारक।
- स्प्रेंगर का समाज संबंधित वर्गीकरण: (i). वैचारिक(ii). आर्थिक(iii). सौंदर्यात्मक(iv). राजनैतिक(v). धार्मिक(vi). सामाजिक
- शेल्डन का वर्गीकरण – शारीरिक बनावट के आधार पर तीन श्रेणियां बताई है(१) एण्डोमार्फी (स्थूलकाय) – विसरोटोनिया स्वभाव(२) मेसोमार्फी (पुष्ठकाय) – सोमटोटोनिया स्वभाव(३) एक्टोमार्फी (दुबला पतला) – सेरीब्रोटोनिया
जुंग द्वारा किया गया मनोवैज्ञानिक वर्गीकरण
वर्तमान में जुंग का वर्गीकरण सर्वोत्तम माना जाता है। इन्होंने मनोवैज्ञानिक लक्षणों के आधार पर व्यक्तित्व के तीन भेद माने जाते है—
(i). अन्तर्मुखी-अंतर्मुखी झेंपने वाले, आदर्शवादी और संकोची स्वभाव वाले होते है। इसी स्वभाव के कारण वे अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में असफल रहते है। ये बोलना और मिलना कम पसंद करते है। पढ़ने में अधिक रूचि लेते है। इनकी कार्य क्षमता भी अधिक होती है।
(ii). बहिर्मुखी-बहिर्मुखी व्यक्ति भौतिक और सामाजिक कार्यो में विशेष रूचि लेते है। ये मेलजोल बढ़ाने वाले और वाचाल होते हैं। ये अपने विचारों और भावनाओं को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकते हैं। इनमे आत्मविश्वास चरम सीमा पर होता है और बाह्य सामंजस्य के प्रति सचेत रहते है।
(iii). उभयमुखी-इस प्रकार के व्यक्ति कुछ परिस्थितियों में बहिर्मुखी तथा कुछ में अंतर्मुखी होते है। जैसे एक व्यक्ति अच्छा बोलने वाला और लिखने वाला है, किन्तु एकांत में कार्य करना चाहता है।
सिगमंड फ्रायड : व्यक्तित्व का मनोविश्लेषिक सिद्धान्त
सिगमंड फ़्रायड ने अपने नैदानिक अनुभव के बाद व्यक्तित्व के एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसे व्यक्तित्व का मनोविश्लेषिक सिद्धांत कहा जाता है । मनोविश्लेषण सिद्धांत मानव प्रकृति या स्वभाव के बारे में कुछ भूतपूर्व कल्पनाओं पर आधारित है यह पूर्व कल्पनाएं निम्नलिखित है :-
- मानव व्यवहार बाह्य कारकों द्वारा निर्धारित होता है तथा ऐसे व्यवहार अविवेकपूर्ण,अपरिवर्तनशील,समस्थितिक तथा ज्ञेय होते हैं
- मानव प्रकृति आत्मनिष्ठ की पूर्व कल्पना से बहुत कम प्रभावित होती है।
- इन पूर्व कल्पनाओं पर आधारित मनोविश्लेषण सिद्धांत की व्याख्या निम्न तीन भागों में बांट कर की जाती है (1) व्यक्तित्व की संरचना (2) व्यक्तित्व की गतिकी (3) व्यक्तित्व का विकास
- (1) व्यक्तित्व की संरचना :- इसका वर्णन करने के लिए फ्राइड ने दो मॉडल का निर्माण किया (क) आकारात्मक मॉडल:- फ्रायड़ ने इसे तीन स्तरों में बांटा है चेतन, अर्द्धचेतन, अचेतन । (ख) गत्यात्मक या सरचनात्मक मॉडल :- इसे तात्पर्य उन साधनों से होता है जिनके द्वारा मूल प्रवृत्तियों सेे उत्पन्न मानसिक संघर्षों का समाधान होता है। ऐसे साधन तीन है – उपाहं(id),अहं(ego),पराहं (super ego)
(2) व्यक्तित्व की गतिकी– इसमें व्यक्तित्व के गत्यात्मक पहले जैसे मूल प्रवृत्ति, चिंता तथा मनोरचनाओं का वर्णन होता है।
(3) व्यक्तित्व का विकास- इसके अंतर्गत मनो लैंगिक विकास का सिद्धांत आता है
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